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________________ धर्मका स्वरूप पर उन मित्रोंकी हत्या करना क्या उचित था ? जब हम उनकी हिंसा किये विना जीवित रह सकते थे, तब क्या हमें उनकी रक्षा न करना चाहिये थी ? क्या यह तामसिकता हमारे अधःपतनका कारण न थी ? यही सोचकर महात्मा महावीर और महात्मा बुद्धने हिंसाके विरुद्ध क्रान्ति की। एक समय जो उचित था या क्षन्तव्य था, दूसरे समयमें वही अनुचित था, पाप था, इसलिये उसके दूर करनेके लिए जो क्रान्ति हुई वह धर्म कहलाई । हिंसा-अहिंसाके प्रश्नके साथ गो-वधके प्रश्नको ले लीजिये । निःसन्देह किसी भी निरपराध प्राणीकी हत्या करना बड़ा भारी पाप है और हिन्दुस्थानमें गोवध करना तो बड़ेसे बड़ा पाप है। परन्तु मुसलमान धर्म जब और जहाँ पैदा हुआ वहाँकी दृष्टिसे हमें विचार करना चाहिए । महात्मा मुहम्मदके ज़मानेमें अरबकी बड़ी दुर्दशा थी । मूर्तियोंके नामपर वहाँ मनुष्य-वध तक होता था। इसको दूर करनेके लिए उनने मूर्तियोंको हटा दिया । " न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी"-न मूर्तियाँ होंगी, न उनके नामपर बलि होगा। परन्तु इतनी विशाल क्रान्ति, लोग सह नहीं सकते थे। पात्रताके अनुसार ही सुधार होता है। इसलिए मनुष्य-बलि बन्द हुई और गो-वध आया । हिन्दुस्तानमें गो-वंश कृषिका एक मात्र सहायक होनेसे यहाँ उसका मूल्य अधिक है। इसीलिए गो-माता सरीखे शब्दकी उत्पत्ति यहाँ हुई है। परन्तु अरबमें कृषिके लिए गो-वंशकी आवश्यकता नहीं है-वहाँ ऊँटोंसे खेती होती है। यदि बलि आदिको रोकनेके लिए मुहम्मद साहबने मूर्तियाँ हटा दी, मनुष्य-वध रोकनेके लिए गो-वधका विधान किया, तो 'सर्वनाश उपस्थित होनेपर आधेका
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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