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________________ मतभेद और उपसम्प्रदाय क्रियमाणको कृत कह दिया तो इसमें जमालिको चिढ़ना न चाहिये था, न दुराग्रह धारण करना चाहिये था परन्तु सच बात तो यह है कि जमालिको पहलेसेही कुछ चिढ़सी थी मौका पाकर वह अभी उठी। ___ म० महावीरकी पुत्री सुदर्शनाको मुनियोंका विचार पसन्द नहीं आया इसलिये उनने भी जमालिका पक्ष लिया परन्तु पीछे ढंक नामक एक श्रावकने उन्हें उनकी भूल बताई । भूल मालूम होनेपर उनने जमालिका पक्ष छोड़ दिया और फिर म० महावीरकी शिष्या होगईं। फिर कोई जमालिका अनुयायी न रहा। ___म० महावीरको कैवल्यात्पत्तिके चौदह वर्ष बाद, अर्थात् महावीरनिर्वाणके १६ वर्ष पहिले, जमालिने यह विरोध किया था। तिष्यगुप्त-इसके दो वर्ष बाद ऋषभपुर अर्थात् राजगृह नगरके गुणशिलक चैत्यमें आचार्य वसुके शिष्य तिष्यगुप्तने आत्माके विषयमें एक नया वाद खड़ा किया । आत्मप्रवादपूर्वका अध्यापन करते समय इन्हें शंका हुई कि जीवका एक प्रदेश भी जीव नहीं हैं, दो प्रदेश भी जीव नहीं है, एक प्रदेश भी कम रहे तब तक जीव नहीं है, इससे मालूम होता है कि कोई अंतिम प्रदेश ही ऐसा है जिसे जीव कह सकते हैं । बाकीके प्रदेशोंको जीव नहीं कह सकते । गुरुने बहुत समझाया कि जैसा अन्तिम प्रदेश जीव है उसी प्रकार अन्य प्रदेश भी । प्रदेशोंमें कोई अन्तर नहीं है। परन्तु तिष्यगुप्तको बात समझमें न आई । बस ! इनका बहिष्कार कर दिया गया। ये भी आमलकल्पा नगरीके आम्रवनमें चले गये। वहाँ मित्रश्री श्रावकको इनकी निह्नवताका पता लगा। उसने इन्हें
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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