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________________ कर्मक्षयजातिशय यही कहा जा सकता है कि म० महावीरमें दिव्यता बतलानेके लिये भक्तों द्वारा यह कल्पना की गई है । इस कल्पनाका दूसरा कारण भी कहा जा सकता है । श्वेताम्बरोंके महावीर चरित्रमें महावीर बात करते हैं, किसीको कहीं भेजते हैं, किसीको बुलाते हैं, किसीके अनुरोधसे कहीं जाते हैं। दिगम्बरोंके महावीर चरित्रमें ऐसी बातें नहीं पाई जातीं। आजकल भी दिगम्बरोंकी यही मान्यता है कि अगर भगवान ऐसा करें तो उनमें इच्छा साबित हो जायगी जो कि मोहका परिणाम है । इसलिये दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार तीर्थंकरके कार्य यंत्रवत् होते हैं। इसलिये उनका गमन भी यंत्रवत् होना चाहिये । ऐसा गमन तो आकाश गमन ही हो सकता है, क्योंकि जमीन पर चलनेमें तो पैरोंके उठाने रखनेमें इच्छा होगी। इसलिये जहाँके भव्योंका पुण्य आकर्षण करता है वहीं पर तीर्थंकर आपसे आप पहुँच जाते हैं । निर्मोहताकी इस सूक्ष्म किन्तु अस्वाभाविक परिभाषाने ऐसे ऐसे अतिशयोंकी कल्पना करनेके लिये भक्तोंके हृदयको बाध्य किया है। कवलाहारके विषयमें कह चुका हूँ। दिव्यता साबित करनेके लिये इसकी कल्पना हुई है । दूसरा कारण निर्मोहताकी सूक्ष्म किन्तु अस्वाभाविक परिभाषा है। केवलज्ञान पैदा हो जानेसे तीर्थंकरको जीवनभर भूख नहीं लगती यह मान्यता भी भक्तिका फल है । तीर्थंकर कवलाहार नहीं करते इस बातको साबित करनेके लिये दिगम्बरोंने अनेक युक्तियाँ दी हैं जैसे-" अरहंत तो केवली हैं, वे अशुचि वस्तुओंको देखते हुए कैसे भोजन करेंगे?" सर्वज्ञताके स्वरूपमें जो भ्रम पैदा हुआ है उसने इसी प्रकारके अन्य अनेक भ्रम पैदा
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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