SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० जैनधर्म-मीमांसा कुछ दोनोंमें जुदे जुदे हैं। और कुछ ऐसे हैं जिनका उल्लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायमें हुआ है, परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायमें नहीं हुआ किन्तु दिगम्बर सम्प्रदायको उनके माननेमें विरोध नहीं है ।। म. महावीरके चौंतीस आतिशय माने जाते हैं । वे तीन भागोंमें विभक्त हैं—सहजातिशय (जन्मके अतिशय ), कर्मक्षयजातिशय ( केवलज्ञानके अतिशय ) और देवकृत अतिशय । दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार सहजातिशय दश हैं और श्वेताम्बर-सम्प्रदायके अनुसार चार हैं। सहजातिशय श्वेताम्बर मान्यता१-दुग्धके समान श्वेत रुधिर । २–पसीना-रहित शरीर । सुन्दर रूपवाला शरीर । सुगन्धित शरीर । मलरहित शरीर । रोगरहित शरीर । ३-आहार तथा नीहार चर्मचक्षुसे न दीखे । ४श्वासोच्छासमें कमल जैसी सुगन्ध हो । दिगम्बर मान्यता१-दुग्धके समान श्वेत रुधिर । २-पसीना रहित शरीर । ३-सुन्दर रूपवाला शरीर । ४-सुगन्धित शरीर । ५–मलरहित शरीर । ६-सुलक्षणता । ७-अनन्त बल । ८-प्रियहितवादित्व । ९-समचतस्र संस्थान । १०-वज्रर्षभ नाराच संहनन । दोनों सम्प्रदायोंमें पहिला अतिशय समान है। दूसरेसे पाँचवें नम्बर तकके चार अतिशय श्वेताम्बरोंके दूसरे अतिशयमें शामिल हो जाते हैं । अब दिगम्बरोंके पाँच अतिशय और खेताम्बरोंके दो अतिशय रह जाते हैं।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy