SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म-मीमांसा mmmmmmmmmmmmmmm...mmmmmwwwwwwwwwwwww इन्द्रभूतिके संशयको म० महावीरने अपनी प्रबल युक्तियोंसे और अनुभवसे बिलकुल दूर कर दिया। उनके अनुभवपूर्ण गम्भीर ज्ञान, उनकी वक्तृत्वशक्ति, उनके अटूट विश्वास और दिव्यचरित्रका इन्द्रभूतिके ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि वे घर न लौटकर वहींके वहीं उनके शिष्य हो गये । इन्द्रमूतिके समान अन्य दस विद्वान् भी उनके शिष्य हो गये । इन विद्वानोंके पास जो शिष्य परिवार था उसने भी अपने गुरुओका अनुकरण किया । इन विद्वानोंका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है नाम ग्राम पिता | माता संशय का विषय(१) इन्द्रभूति गोबर पृथ्वी आत्मा है कि नहीं ? (२) अमिभूति | कर्म है कि नहीं ? (१) वायुभूति क्या जीव शरीरसे भिन्न है ? (४) व्यक्त कोल्लाक जगत् शून्य है या कुछ है भी ? (५) सुधर्मा जीव जैसा इस भवमें वैसा परभवमें ? (६) मंडिक मौर्य धनदेव विजयादवी बंध मोक्ष कुछ है कि नहीं ? (७) मौर्यपुत्र ,, देव गति है कि नहीं? (८) अकाम्पत विमलापुरी देव । नरक कुछ है कि नहीं? या यों ही डरानेके लिये मान लिया गया है ? (९) अचल भ्राता | कोशला वसुनन्दा पुण्य पाप है कि नहीं ? (१०) मेतार्य तुंगिक दत्त करुणा परलोक है कि नहीं ? आत्मा पञ्चभूतात्मक तो नहीं है ? (13) प्रभास राजगृह क्ल अतिभद्धा मोक्ष है कि नहीं ? यहाँ ध्यान देनेकी एक बात यह है कि मंडिक और मौर्यपुत्रकी माता एक है और पिता दो हैं। जिस समय मंडिक शैशव अवस्थामें जय
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy