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________________ बारह वर्षका तप १२७ Marath.. तक आई परन्तु वे वहाँसे न हटे । अग्नि-तापसे पैर काले पड़ गये परन्तु वे वहाँ खड़े ही रहे । कष्टसे डरना म० महावीर जानते ही न थे। एकबार जंगलके रक्षक चोरोंकी खोजमें फिर रहे थे। म० महावीरसे उन्होंने पूछताछ की परन्तु इन्होंने कुछ उत्तर न दिया । फलतः वे गिरफ्तार कर लिये गये। पीछे दूसरे शैल-पालकने पहिचाना और क्षमा माँगकर छोड़ दिया। ___ यद्यपि म० महावीरने ऐसे अनेक कष्ट सहे परन्तु इतनेसे उन्हें सन्तोष न हुआ । वे और भी क्रूर मनुष्योंके परिचयमें आना चाहते थे और उनकी प्रकृतिका अभ्यास करना चाहते थे । इसलिये वे अनार्य देशमें गये। भारतवर्षके कई प्रदेश उस समय अनार्य समझे जाते थे । लाट देश भी उस समय अनार्य समझा जाता था। इस देशमें म० महावीरने मार-पीट, गाली-गलौज आदिके बहुत कष्ट सहे। इसके बाद वे फिर आर्य-देशमें लौट आये। एक बार म० महावीर विशाला नगरी में आये और एक लुहारकी शालामें, उसके कुटुम्बियोंकी आज्ञा लेकर, ठहरे । लुहार बीमार था। सुबह जब वह उठा तो एक नग्न साधुको देखकर अपशकुन मानने लगा और गुस्सामें आकर लोहेका घन उठाकर मारने दौड़ा । परन्तु कमजोरीके कारण घन हाथसे छूट पड़ा और वह उसीके ऊपर गिरा । शास्त्रमें लिखा है कि इन्द्रने अपनी शक्तिसे उसीके हाथसे उसीके सिरपर घन पटकवा दिया था। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि इन्द्र महाराजकी वहाँ ज़रा भी ज़रूरत नहीं थी। एक दिन म० महावीर शालिशीर्ष गाँवके बाहर एक बागमें प्रति
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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