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________________ १२२ जैनधर्म-मीमांसा wwwmommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm घूमता सर्प भी वहाँ पहुँचा और महात्माको देखकर चौंका। उसने घूर घूर कर देखा, फुफकारा, परन्तु जब उनको निश्चल ही पाया तो उसका क्रोध बढ़ा तथा कुछ भय भी हुआ। वह दौड़कर आया और उनके पैरमें फण मार कर भागा । इस प्रकार कई बार वह दौड़ दौड़ कर आया और फण मारकर तथा काटकर भागा, परन्तु उसके विषका कोई प्रभाव उनके ऊपर नहीं हुआ। इसके दो कारण हो सकते हैं १-सर्पका विष एक ऐसा विचित्र विष है कि तीव्र मनोबलवालोंके ऊपर उसका असर नहीं पड़ता। आज भी मांत्रिक लोग मनोबलके आधारसे सर्पके विषको निष्फल कर देते हैं और मृतप्राय मनुष्योंको जीवित कर देते हैं। इसलिये म० महावीर सरीखे दृढ़मनस्वी व्यक्तिपर उसके विषका असर न होना स्वाभाविक है। २-सर्प डरके मारे इतनी जल्दी फण मारकर भागता था कि उसके काटने पर भी उसका विष भगवानके शरीरके खून तक न पहुँच पाता था । ____ इन दो कारणोंमेंसे कोई कारण होगा जिससे सर्पका विष असर न डाल सका । अथवा जैसे कि पहले कहा जा चुका है कि यह घटना भी श्रीकृष्णके जीवनकी नकलके रूपमें लाई गई हो । खैर, इतना करनेपर भी जब म० महावीरके ऊपर कुछ असर न पड़ा, न म० महावीरने सर्पके ऊपर कुछ आक्रमण किया तब सर्पको बड़ा आश्चर्य हुआ और वह स्थिर दृष्टि से उनकी तरफ़ देखने लगा । तब महात्माने कहा-चण्डकौशिक, कुछ समझ । आत्माको मत भूल । ___ म० महावीरके इन शब्दोंको सर्पने समझा या नहीं, यह कौन कह सकता है ? परन्तु इन शब्दोंको बोलते समय उनके मुखपर
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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