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________________ .९२ जैनधर्म-मीमांसा ....... wwwww दुराग्रह नष्ट हो जाता है। इस प्रकार संस्थापकके जीवन-चरित्रसे धर्मके निर्णय करनेमें बड़ी सुविधा होती है। ___ हाँ, दुर्भाग्यसे धर्मसंस्थापकोंके जीवन-चरित्र शुद्ध रूपमें उपलब्ध नहीं होते । इसका एक कारण तो यही है कि पुराने समयमें लेखनप्रणाली बहुत प्रचलित न होनेसे वह सामग्री नष्ट हो गई है। दूसरा यह कि, भक्त लोग धर्म-संस्थापकको मनुष्य नहीं रहने देते किन्तु देव या देवाधिदेव बना देते हैं और ऐसी अलौकिक कल्पनाएँ करते हैं कि जिनको सुनकर हँसी आये विना नहीं रहती । परलोक कैसा है, देवगति कैसी है, है कि नहीं, आदि प्रश्न आज तक ज्योंके त्यों खड़े हुए हैं और उस जमानेमें भी थे, परन्तु भक्तोंकी दृष्टिमें देव तो घरघरमें रहते थे और आते थे । इन सब असंगत, अविश्वसनीय तथा प्रमाण-विरुद्ध बातोंको दूर करके हमें महापुरुषोंके जीवनका अभ्यास करना चाहिये । इससे सिर्फ सत्यकी ही रक्षा नहीं होती किन्तु उनके पवित्र जीवनसे हम बहुत-सा वास्तविक लाभ उठाते हैं । नरसे नारायण बननेका मार्ग हमें दिखलाई देने लगता है। ___ म० महावीर एक असाधारण महापुरुष थे। उनके त्याग और सेवाकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । परन्तु इससे हम उनके जीवनमें असंभव और असत्य घटनाएँ मिला दें तो हम उनका महत्त्व बढ़ानेकी अपेक्षा कम ही करेंगे । और उनके जीवनको विचारशील जनताके लिये अनुपयोगी और उपेक्षणीय बना देंगे। __ म० महावीरके कथनानुसार ही जगत्में कोई ईश्वर नहीं है । स्वयं म० महावीर एक दिन बहुत साधारण प्राणी थे। अनेक जन्मोंमें विकास करते करते वे महावीर हो गये। और जन्मसे तो वे एक
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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