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________________ महात्मा महावीर अनन्तज्ञानी और सर्वज्ञ पर्यायवाची शब्द बन जाते हैं। इसी प्रकार यहाँ 'अनन्त जिन' शब्दका अर्थ पूर्ण 'जिन' है। ___ यह अर्थ युक्तिसंगत भी है, अबाध भी है और एक आजीवकके मुँहसे निकलने लायक भी है। वहाँपर अनन्तनाथ नामक व्यक्तिका उल्लेख होना किसी तरह भी ठीक नहीं कहा जा सकता । ___ इससे यह बात भी मालूम होती है कि कहीं पुराने समयमें 'जिन' शब्दका उल्लेख मिल जाय तो उसे जैनधर्मका उल्लेख न समझना चाहिये । 'जिन' शब्दका प्रयोग बौद्ध, आजीवक आदि श्रमण-सम्प्रदायोंमें आमतौरपर प्रचलित था और इस 'जिन' शब्दकी प्राचीनतासे जैनधर्मकी प्राचीनताका कोई सम्बन्ध नहीं है। ___ अन्तमें मैं इस बातको दुहराता हूँ कि जब म० महावीर एक तीर्थकर थे तब उनकी धर्म-संस्था एक स्वतन्त्र धर्म-संस्था होना चाहिये और उसके संस्थापक वे ही थे । जैनधर्म सिर्फ ढाई हजार वर्ष पुराना है, इस बातका. उसकी सत्यता-असत्यतासे कोई सम्बन्ध नहीं है । इस धर्म-संस्थाने भारतवर्षका बहुत कल्याण किया है तथा पुराने धर्मोपर ऐसी छाप मारी हे कि उनको पुराने विकारोंको हटाकर नवीन रूप धारण करना पड़ा है। अधिक पुराना होनेसे उसकी सेवाएँ बढ़ नहीं जातीं और नवीन होनेसे उसकी सेवाएँ घट नहीं जाती। महात्मा महावीर किसी धर्मको समझनेके लिये उसके संस्थापकका जीवन-चरित बहुत उपयोगी होता है। बहुत-सी काम, जिनको हम अकाट्य नियम समझते हैं, अमुक परिस्थितिके फल होते हैं। इससे उनके विषयमें हमारा
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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