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________________ जेमा हग पहले विचार कर चुके हैं अहंन एक दृष्टि में ना हम भूल भटकों का अपने उपदेश के द्वारा अत्यंत उपकार करगये हैं और दूसरी दृष्टि से हमारे श्रादर्श हैं नया य ही दोन कारण हैं जिनकी वजह में जैनधर्म उम श्रेणी के महात्माओं की जा और पामना करने की आवश्यकता बनाना है। अब हम अपने प्रस्तुत विषय मुनि पृजा पर आते हैं। * जैन धर्म मिश्या पक्षपान करना भी नहीं मिग्याता । वह कहना है : यो विश्ववदया जननजलनिधःभनिनः पारश्वा । पौवांपर्याविरुद्धंमचनमनुपमंनिष्कलंकम यायमः ॥ नं वंदे साधुवंदयं मकलगुणनिधि ध्वस्तापद्विशन्तम । बुद्धं वा वर्धमानं शनदलनिलयं केशवं वा शिवं वा॥ श्रीमन भह अकलंकदव के उपरोक्त पद्यम प्रकट कि जैन धर्मानुमार मव महापुरुप, जो अपने शान्द्रिय झान के वलसे नीनकाल सम्बंधी समस्त बातों को जानते हैं, जो संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिए नाका के समान है, जिनका उपदेश निष्कलंक है और वस्तु स्वभाव के विरुद्ध नहीं है तथा जो सर्व गुणोंकी खान और सर्व दोषों से रहित है, चाहे उनका नाम युद्ध हो, महावीर हो विष्णु हो. केशव हो या शिव हो अथवा कोई और नाम इंसा मोहम्मद वरांग हा. हमारे पूजनीयही है ।
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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