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________________ करेंगे ? नहीं, वे परम वीतरागी और शांत स्वरूप हैं। उन्होंने काम, क्रोध आदि तथा सर्वप्रकार की इच्छाओं को नाश करदिया है, वे न तो स्तुति से ही प्रसन्न होते हैं और न निन्दा से ही अप्रसन्न । अतएव यह बात अच्छी तरह हृदय में जमा लेनी चाहिये कि जैनधमांनुसार उपासना का मूल उद्देश्य हमारे उपास्य देवता के गुणों की प्राप्ति है अथवा दू शब्दों में, उनके ( आत्मा के स्वाभाविक ) गुणों में हमारे अनु राग को दृढ़ बनाने के लिये ही उनकी उपासना की जाती है are बारबार एकाग्रता पूर्वक चितवन करने से हममें भी वे ही गुण प्रकट होजायें । जिस प्रकार एक यात्री के लिये अपने उद्देश्य स्थान और उस तक पहुंचने के मार्ग का, जब तक वह वहां न पहुंच जावे. ध्यान में रखना आवश्यक है और वहां पहुंचने पर वह यह चितवन नहीं करता कि मुझे अमुक स्थान पर पहुंचना हैं किन्तु यह समझ लेता है कि अब मैं उसी स्थान पर हूं, dre sfruarर इस जीव के लिये भी अपने ध्येय और आदर्श पुरुषों के द्वारा बनाए हुए मार्ग का ध्यान में रखना आवश्यक है तथा क्रम २ से ध्यान (चितवन) के द्वारा उसकी तरफ अग्रसर होता हुआ वह अंत में उसे पालता है । उस समय चितवनकी बिलकुल आवश्यकता नहीं होती और
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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