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________________ जनधर्म पांचों इन्द्रियाँ होती है। इन इन्द्रियोके द्वारा वे जीव अपने अपने योग्य स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्दका ज्ञान करते है। जैन शास्त्रोमे इन सभी जीवोंकी योनि, जन्म और शरीर वगैरहका विस्तारसे वर्णन किया गया है। । यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना जरूरी है कि जनदर्शन जीव बहुत्ववादी है। वह प्रत्येक जीवको स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करता है। उसका कहना है कि यदि सभी जीव एक होते तो एक जीवके सुखी होनेसे सभी जीव सुखी होते, एक जीवके दुःखी होनेसे सभी जीव दुखी होते, एकके बन्धनसे सभी बंधनबद्ध होते और एककी मुक्तिसे सभी मुक्त हो जाते । जीवोकी भिन्न-भिन्न अवस्थाओको देखकर ही सांख्यने भी जीवोकी अनेकताको स्वीकार किया है । जैनदर्शनका भी यही कहना जीव सुखी होते. धनबद्ध होते और बाको देखकर ही भी यही ५ अजीवद्रव्य . ६ जिन द्रव्योंमें चैतन्य नहीं पाया जाता वे अजीवद्रव्य कहे जाते है। वे पाँच है। उनका परिचय इस प्रकार है १ पुद्गलद्रव्य यह वात उल्लेखनीय है कि जैन दर्शनमे पुद्गल शब्दका प्रयोग विल्कुल अनोखा है, अन्य दर्शनोमें इसका प्रयोग नही पाया जाता । जो टूटे फूटे, बने और बिगडे वह सब पुद्गलद्रव्य है। मोटे तौरपर हम जो कुछ देखते है, छते है, संघते है, खाते हैं और सुनते है वह सब पुद्गलद्रव्य है। इसीलिये जैन शास्त्रोंमे पुद्गलका लक्षण रूप, रस, गध और स्पर्शवाला बतलाया है। इस तरह पुद्गलसे आधुनिक विज्ञाना 'मंटर' (Matter) और इनर्जी (Energy) दोनो ही सगृहात हो जाते है । जो परमाणुसम्बन्धी आधुनिक खोजोसे परिचित ह वे पुद्गल शब्दके चुनावकी प्रशंसा ही करेंगे। आधुनिक वैज्ञानिकांक मतानुसार सव अटोम (परमाणु) इलैक्ट्रोन प्रोट्रोन और न्यूट्राना
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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