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________________ जैनधर्म दुई शक्तिको सूचना दी। जिवने वीरभद्रको आज्ञा दी कि तुम सारमें जाकर मानव योनिमें जन्म लो मोर इन धर्मोको नष्ट करो । माज्ञानुसार वीरभद्रने पुरुषोत्तम पट्ट नामके व्यक्तिको स्वप्न दिया कि तुम्हारे घरमें पुत्ररूपमें जन्म लूंगा । स्वप्न सत्य हुआ । वालकका राम राम रखा गया और दीवके रूपमें उसका लालन पालन हुआ । शेवका भक्त होनेसे उसे एकान्तद रामैया कहते थे । किंवदन्तीके अनुर यह रामैय्या ही उस देशमें जैनधर्मके विनाशके लिये उत्तरदायी है। कयामे लिखा है कि एक दिन रामैया शिवकी पूजा करता था । उस समय जैनोने उसे चैलेंज दिया कि वह अपने देवताका देवत्व सिद्ध करे। रामैयाने चैलेंज स्वीकार कर लिया। यह तय हुआ कि रामैया अपना सिर काटकर फिर जोड़ दे । यदि वह ऐसा कर सका तो नोने अपने मन्दिर खाली करके उस देशको छोड़ देनेका वचन दिया। धर्मयाने सिर काटकर फिर जोड़ लिया और जैनोसे अपना वादा पूरा करनेके लिये कहा । जैनोंने अस्वीकार कर दिया। यह सुनते हो रामैयाने जैनोंके मन्दिरोको नष्ट-भ्रष्ट करना प्रारम्भ किया । जनोने विज्जलसे जाकर शिकायत को । विज्जल शेवोपर बहुत कुछ हुआ । किन्तु रामैयाने विज्जलको अपना चमत्कार दिखाकर गंव बना लिया । विज्जलने जनोको आदेश दिया कि वे गवों के साथ शान्तिपूर्वक बर्ताव करें । कल्चरी राज्यमें जैनोके विनाशकी साक्षी देनेवाली इस तरहकी कथाएँ और घटनाएं शेव अन्यो अनेक मिलती है । ५. विजयनगर राज्य इस तरह दक्षिण भारतमें यद्यपि जैनवमं राजाश्रय विहीन हो या । फिर भी गुणग्राही राजा लोग जैन गुरुओं, विद्वानों और ताओंका यथोचित आदर करते थे । ऐसे राजाओ में विजयनगर साम्राज्यके शासकोंका नाम उल्लेखनीय है । यह राज्य वैदिक १ स्टडीज इन सा० इ० जैनिज्म, पृ० ११३ |
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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