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________________ इतिहास ४. कालाचुरि राज्यमें जैनोंका विनाश राष्ट्रकूटोंके पश्चात् राज्यशक्ति पश्चिमीय चालुक्योंके हाथमा : आ गई। उनके समयमें जैनधर्मका प्रभाव नष्ट हो गया। यदि देश, प्रचलित किंवदन्तीपर विश्वास किया जाय तो कहना होगा कि जै - मन्दिरोंमेसे नमूर्तियां उठाकर फेंक दी गईं और उनके स्थानप' पौराणिक देवताओकी मूर्तियां स्थापित कर दी गई। चालुक्योंका राज्य बहुत थोड़े समय तक ही रहा; क्योकि उनन कालाचूरियोंने निकाल बाहर किया । यद्यपि कालाचूरियोका राज्य भी बहुत थोड़े समय तक ही रह सका किन्तु जैनधर्मके विनाशर्क दृष्टिसे वह स्मरणीय है। ____ महान कालाचूरिनरेश विज्जल जैन था। किन्तु उसका समर लिंगायत सम्प्रदायके उद्गम और गिवभक्तिके पुनरुज्जीवन को दृष्टिसे उल्लेखनीय है । विज्जलके अत्याचारी मंत्री वसवके नेतृत्वम् इस सम्प्रदायने नोंको बहुत कष्ट दिया। विज्जलराज चरितके अनुसार वसवने अपने स्वामी जैन राजा विज्जलकी हत्याके लिये, क्या क्या नही किया । फलतः उर देशसे निकाल दिया गया। और निराश होकर वह स्वयं एक कुएर गिर गया। किन्तु उसके अनुयायियोंने उसके इस प्राणत्यागक 'धर्मपर वलिदान' का रूप दिया । और लिंगायत सम्प्रदाय विषयमें ललित और सरल भाषामे साहित्य तयार करके देशमें सर्व वितरित किया। तथा जिन लिंगायत नेताओने कालाचूरि साम्राज्यव अन्दर जैनोंके विनाशमें बहुत बड़ी सहायता की उनके नामोंके प . ओर अनेक कपोलकल्पित कथाएं जुट गई। ऐसी एक कथा जो उर समयके शिलालेखमें अकित है यहाँ दी जाती है शिव और पार्वती एक शैव सन्तके साथ कैलास पर्वतपर विच रहे थे। इतनेमें नारद आये, उन्होने जैनों और बौद्धोंकी बढ़त १ स्टडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म, पृ० ११२।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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