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________________ (५० जनधर्म । राष्ट्रकूटोंने १७३ ई. तक अपनी स्वतंतता कायम रखी। उसके पश्चात् वे पश्चिमीय चालुक्योसे पराजित हुए। चालुक्याने लगभग दो सौ वर्ष तक राज्य किया। उसके पश्चात् कालारियोसे वे पराजित हुए। कालाचूरियोंने तीस वर्ष राज्य किया। - अब प्रत्येक राजवश समयमें जैनधर्मकी स्थितिका दिग्दर्शन कराया जाता है। १. गंगवंश इस वंशकी स्थापना ईसाकी दूसरी शतीमें जैनाचार्य सिंहनन्दिने की थी। इसका प्रथम राजा माधव था, जिसे कोगणी वर्मा कहते हैं। मुष्कार अथवा मुखारके समयमे जैनधर्म राजधर्म बन गया था। तीसरे और चौथे राजामोको छोड़कर उसके शेष पूर्वज निश्चयसे नधर्मके सहायक थे। माधवका उत्तराधिकारी अवनीत जैन था। भवनीतका उत्तराधिकारी दुविनीत प्रसिद्ध वैयाकरण जैनाचार्य पूज्यसादका शिष्य था। ईसाकी चौथीसे बारहवी शताब्दी तकके अनेक शिलालेखोसे यह जात प्रमाणित है कि गंगवंशके शासकोंने जनमन्दिरोंका निर्माण कया, जनप्रतिमाओंकी स्थापना की, जैन तपस्वियोके निमित्त गुफाएं तयार कराई और जैनाचार्योको दान दिया। इस वंशके एक राजाका नाम मारसिंह द्वितीय था। इसका शासनकाल चेर, चोल और पाण्डय वंशोपर पूर्ण विजय प्राप्तिके लिये रसिद्ध है। यह जैन सिद्धान्तोंका सच्चा अनुयायी था। इसने अत्यन्त ऐश्वर्यपूर्वक राज्य करके राजपद त्याग दिया और धारवार प्रान्तके बांकापुर नामक स्थानमें अपने गुरु अजितसेनके सन्मुख समाधिपूर्वक पाणत्याग किया। एक शिलालेखके आधारपर इसकी मृत्यु तिथि ६७५ ई० निश्चित की गई है। ___ चामुण्डराय राजा मारसिंह द्वितीयका सुयोग्य मंत्री था। उसके परनेपर वह उसके पुत्र राजा राचमल्लका मंत्री और सेनापति १ 'स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनिज्म' पृ० १०॥
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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