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________________ इतिहास सेनापति मल्लप्प था । उसकी पुत्री अत्तिमव्वे आदर्श धर्मचारिणी थी। उसने अपने व्ययसे सोने और कीमती पत्थरों की डेढ हजार ५ मूर्तियां बनवाई थी। राजेन्द्र कोंगाल्वकी माता पोचव्वरासिने ई०१५ १०५० मे एक वसदि बनवाई थी। ___ कदम्वराजा कीर्तिदेवकी प्रथम पली माललदेवीका स्थान भी धर्मप्रेमी महिलाओमें अत्यन्त ऊंचा है । इसने १०७७ ई० मे पद्मनन्दि सिद्धान्तदेवके द्वारा पार्श्वनाथ चैत्यालय बनवाया और प्रसंच ब्राह्मणोंको आमंत्रित करके उन्हीके द्वारा उस जिनालयकाय नामकरण 'ब्रह्म जिनालय' करवाया। नागर खण्डके धार्मिक इतिहासमें चट्टल देवीका खास स्थान है । यह सान्तर परिवारकी थी। सान्तर परिवार जैनमतावलम्बी : और उसका धर्मप्रेम विख्यात है। इस महिलाने सान्तरोंकी राजधानी है पोम्वुच्चपुरमे जिनालयोंका निर्माण कराया और अनेक र क. सम्बन्धी कार्य किये। ___ यहाँ दक्षिण भारतके राजनैतिक इतिहासके सम्बन्धमे थोड़ा . डालना उचित होगा। गंग राजाओंने मैसूरके एक बहुत बड़े भागपर ईसाकी दूसरी शताब्दीसे लेकर ग्यारहवी शताब्दी तक राज्य किया । उसके पश्चात् वे चोलोंके द्वारा पराजित हुए। किन्तु चोल लम्बे समय तक राज नहीं कर सके और शीघ्र ही होयसलोके द्वारा निकाल बाहर किये गये। होयसलोने एक पृथक राजवंश स्थापित किया जो -११वी शतीसे १४वी शती तक कायम रहा। ' ' प्राचीन चालुक्योंने छठी शतीके लगभग अपना राज्य स्थापित किया और प्रबल शासनके पश्चात् दो भागोमे बंट गये--एक पूर्वीय चालुक्य और दूसरा पश्चिमीय चालुक्य । पूर्वीय चालुक्योने ७५० ई० से ११वी शती तक राज्य किया। उसके पश्चात् उनके राज्य चोलोके द्वारा मिला लिये गये । पश्चिमीय चालुक्य ७५० ई० के लगभग राष्ट्रकूटोसे पराजित हुए।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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