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________________ इतिहास असलमे उत्तर प्रदेशमे जैनधर्मका इतिहास अभी तक अन्धकार है। इसलिये उत्तर प्रदेशके राजाओंका जैनधर्मके साथ कैसा सम्वन था यह स्पष्ट रूपसे नहीं कहा जा सकता। फिर भी उत्तर प्रदेशमे सर्व जो जैन पुरातत्त्वकी सामग्री मिलती है उससे यह पता चलता है कि कभी यहाँ भी जैनधर्मका अच्छा अभ्युदय था, और अनेक राजाओर उसे आश्रय दिया था। उदाहरणके लिये हर्षवर्द्धन वडा प्रताप' राजा था। लगभग समस्त उत्तर प्रदेशमें उसका राज्य था। इसन पाँच वर्ष तक प्रयागमे धार्मिक महोत्सव कराया। उसमे उसन जैनधर्मके धार्मिक पुरुषोका भी आदर सत्कार किया था। __ जो राजा जैनधर्मका पालन नहीं करते थे, किन्तु जैनधर्मके मार्ग बाधा भी नहीं देते थे, ऐसे धर्मसहिष्णु राजाओके कालमे जैनधर्मक, खूब उन्नति हुई। समग्र उत्तर और मध्य भारतके सभी प्रदेशोमे पार्य जानेवाले जैनधर्मके चिह्न इसके साक्षी है। उत्तर प्रदेशके जिन. जिलोमे आज नाममात्रको जैनी रह गये है उनमे भी प्राचीन जैन चिह्न पाये जाते है। उदाहरणके लिये गोरखपुर जिलेमे तहसील देव रियाम कुहाऊं, व खुखुन्दोके नाम उल्लेखनीय है । इलाहावादसे दक्षिण पश्चिम ११ मीलपर देवरिया और भीतामे बहुतसे पुरातन खण्डित स्थान है। कनिग्धम सा० का कहना है कि यहाँ जादोवशके उदयन राजा रहते थे, जो जैनधर्म पालते थे। उन्होने श्री महावीर स्वामीकी एक प्रसिद्ध मूर्तिका निर्माण कराया था, जिसे लेने के लिए। उज्जैनके राजा और उदयनसे एक बडा युद्ध हुआ था। वलरामपुर ( अवध ) से पश्चिम १२ मीलपर 'सहेठ महे नामका स्थान है। यहाँ खुदाई की गई थी। यह स्थान ही श्रावस्ती नगरी है। इसके सम्बन्धमे डा० फुहररने अपनी रिपोटमे लिखा है कि ११ वी गताब्दीमे श्रावस्तीम जैनधर्मकी बहुत उन्नति थी क्योकि खुदाईमे तीर्थरोकी कई मूर्तियां, जिनपर सवत् १११२ से ११३३ तक खुदा है यहाँ प्राप्त हुई है । सुहृद्ध्वज श्रावस्तीके जैन
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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