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________________ जैनधर्म कलचुरी राजधानी त्रिपुरी और रतनपुर में अब भी अनेक प्राचीन न मूर्तियाँ और खण्डहर विद्यमान है । इस प्रान्तमे जैनो के अनेक तीर्थ है-वैतूल जिलेमे मुक्तागिरि, गर जिलेमें दमोहके पास कुण्डलपुर और निमाड जिलेमें सिद्धवर अपने प्राकृतिक सौन्दर्यके लिये भी प्रसिद्ध है । भेलसाक मीपका 'वीसनगर' जैनियोका बहुत प्राचीन स्थान है। शीतलनाथ रकी जन्मभूमि होने से वह अतिशय क्षेत्र माना जाता है । जैनन्यो में इसका नाम भद्दलपुर पाया जाता है । वुन्देलखण्ड मे भी अनेक जैनतीर्थ है जिनमें, सोनागिर, देवगढ, नागिर, और द्रोणगिरिका नाम उल्लेखनीय है। खजुराहाके प्रसिद्ध नमन्दिर आज भी दर्शनार्थियोको आकृष्ट करते है । सतरहवी ताब्दी से यहाँ जैनधर्मका ह्रास होना आरम्भ हुआ । जहाँ किसी समय लाखो जैनी थे वहाँ अब जैनधर्मका पता जैन मन्दिरोके खण्डहरों और टूटी फूटी जैन मूर्तियोसे चलता है । ७. उत्तर प्रदेशमें जैनधर्म उत्तर प्रदेशमे जैनधर्मका केन्द्र होनेकी दृष्टिसे मथुराका नाम उल्लेखनीय है । यहाँके कंकाली टीलेसे जो लेख प्राप्त हुए है वे ई० पू० २री शताब्दी से लेकर ई० स० ५वी शताब्दी तकके है, और इस तरह ये बहुत प्राचीन है । इनसे पता चलता है कि इतने सुदीर्घ काल तक मथुरा नगरी जैनधर्मका प्रधान केन्द्र थी । जैनधर्मके इतिहासपर इन शिलालेखोसे स्पष्ट प्रकाश पडता है । इनसे पता चलता है कि जैनधर्मके सिद्धान्त ओर उसकी व्यवस्था अति प्राचीन है । यहाँके प्राचीनतम गिलालेखसे भी यहाँका स्तूप कई शताब्दी पुराना है इसके सम्बन्धमें फुहरर सा० 'लिखते है 'यह स्तूप इतना प्राचीन है कि इस लेख के लिखे जानेके समय स्तूपका आदि वृत्तान्त लोगोको विस्मृत हो चुका था ।' १. म्यूजियम रिपोर्ट, १८६०-६१ ।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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