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________________ जनधर्म म किया जो अशोकने बौद्धधर्मके लिए किया। उत्तर पश्चिमके नार्यदेशोंमे भी सम्प्रतिने जनधर्मके प्रचारक भेजे और वहाँ जैन ओके लिये अनेक विहार स्थापित किये। अशोककी तरह उसने । अनेक इमारते बनवाई। राजपूतानाकी कई जैन रचनाएं उसी समयकी कही जाती है। कुछ विद्वानोका मत है कि जो शिलालेख व अगोकके नामसे प्रसिद्ध है, सम्भवत वे सम्प्रतिने लिखवाये थे। इस प्रकार महावीर स्वामीसे लेकर चार सौ वर्ष तक जैनधर्मी राजा श्रेणिक और महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य तथा उनकी सन्तानोके मयमे भारत और उसके बाहर भी जैनधर्मका खूब प्रचार रहा । सके बाद मोय साम्राज्यका ह्रास होना प्रारम्भ हुआ और उसके न्तिम सम्राट् बृहदथको उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्रन मारकर जिदण्ड अपने हाथमे ले लिया। इसने श्रमणोपर बड़ा अत्याचार कया। उनके विहार और स्तूप नष्ट कर दिये। २. उड़ीसा में जैनधर्म कलिंग चक्रवर्ती खारवेल । ( ई०पू० १७४ ) कलिंगमें बहुत प्राचीन कालसे जैनधर्मकी प्रवृत्ति थी। इ० पू० १२४ के लगभग मगधसम्राट् नन्द कलिंगको जीतकर वहाँसे प्रथम जनकी मूर्ति मगर ले गया था। सम्राट् सम्प्रतिके समय वहाँ चेदिव का पुन राज्य हुआ, इसी वगका प्रसिद्ध सम्राट् खारवेल था । कलिंग चक्रवर्ती महाराजा खारवेलको उस युगकी राजनीतिमे सबसे। अधिक महत्वका व्यक्ति माना जाता है। इनके हाथीगुम्फामे पायवहार सम्प्रति महाराजाऽसी अभवत् ।" इसका भाव यह है कि कुणालका इन महाराज सम्प्रति हुआ, जो भारतके तीन खण्डीका स्वामी था, सहन्त गवानका मक्त-जैन था और जिमने जनाय देशोंमें भी श्रमणो-जैन मनियोकाविहार कराया था। १. देगो भारतीय इतिहानकी रूपरेखा, पृ० ७१५॥
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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