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________________ ३२ जैनधर्म इस प्रकार उसकी मृत्युके समय के विषयमे अनिश्चितताका वाताविरण है । इतिहासन हमें यह नहीं बतलाते कि वह कैसे मरा । यदि ज्वह युद्ध स्थलमें मरा होता या अपने जीवन के सुदिनोंमें मरा होता तो • इस घटनाका उल्लेख होता । लेविस राईसके द्वारा खोज निकाले D ये श्रardenian शिलालेखोet अविश्वसनीय मानना जनोकी र समस्त परम्परा और उल्लेखोको अविश्वसनीय मानना है । और एक इतिहास के लिये इतनी दूर जाना बहुत अधिके आपत्तिजनक है | ऐसी स्थितिमें लेविस राईसके साथ यदि हम यह विश्वास करें कि चन्द्रगुप्त जैन व्रतोंको धारण करके महान भद्रवाहके साथ चन्द्रगिरि पर्वत पर चला गया था तो क्या हम गल्ती पर है ?" T अपनी पुस्तके दूसरे संस्करणमें स्मिथने अपने उक्त मतमे परिवर्तन कर दिया था किन्तु तीसरे संस्करणमें उन्होने अपनी भूल स्वीकार करते हुए लिखा र 'मुझे अब विश्वास हो मुख्य-मुख्य बातोमें यथार्थ है कर जैन मुनि हुए थे ।' चला है कि जैनोका यह कथन प्राय और चन्द्रगुप्त सचमुच राज्य त्याग स्व० के० पी० जायसवालने लिखा है' - 'कोई कारण नही हैं कि हम जैनियो के इस कथनको कि चन्द्रगुप्त अपने राज्य के अन्तिम दिनोमें जैन हो गया था और पीछे राज्य छोडकर जिन दीक्षा ले मुनिवृत्तिसे मरणको प्राप्त हुआ, न माने । मे पहला ही व्यक्ति यह माननेवाला नही हूँ । मि० राईसने, जिन्होने श्रवणबेलगोला ₹ 1 के शिलालेखका अध्ययन किया है, पूर्ण रूपसे अपनी सम्मति इसी पक्ष 1 में दी है। और मि० वि० स्मिथ भी अन्तमें इसी मतकी ओर झुके है ।' x सम्राट अशोक ( ई० पू० २७७ } सम्राट् अशोक चन्द्रगुप्त मौर्यका पौत्र था। जैन ग्रन्थोमे इसके १ जर्नल आफ दी बिहार उडीमा रिमर्च मोनायटी, जिल्द ३ ।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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