SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनन पूछनेपर भगवानने ऐसा कहा।धेणिकके चेलनाने कुणिक (मजातन) नामका पुत्र हुमा । जव कुणिक मगरके सिंहासन पर बैग तो उसने अपने पिता श्रेणिकको कैद करके एक पिंजरेमें बन्द कर दिया। एक दिन कुणिक अपने पुत्रको प्यार कर रहा था। उनकी माता चलना उसके पास बैठी हुई थी। उसने अपनी माताने कहा-"मां ! जैमा में अपने पुत्रको प्यार करता हूं, क्या कोई अन्य भी अपने पुत्रको वैसा प्यार कर सकता है। यह नुनकर चेलनाकी आँखोमें आँसू ला गये। कुणिकने इसका कारण पूछा तो चेलना बोली-पुत्र । तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते थे। एक बार जब तुम छोटे थे तो तुम्हारे हायकी अंगुलीमें बहुत पीडा थी। तुम्हें रात्रिको नीद नही आती थी। 'तब तुम्हारे पिता तुम्हारी रस्त और पीवसे भरी हुई अंगुलीको अपने मुंहमें रखकर सोते थे क्योंकि इससे तुम्हें गान्ति मिलती थी।' यह सुनते ही कुणिकको अपने कार्यपर खेद हुआ और वह पिंजरा तोड़कर पिताको बाहर निकालनेके लिये कुल्हाड़ा लेकर दोडा । राजा श्रेणिकने जो इस तरह जाते हुए कुणिकको देखा तो समझा कि यह मुझे मारने आ रहा है। अत कुणिकके पहुँचनेके पहले ही पिंजरे में सिर मारकर मर गया। आजसे ८२ हजार वर्ष बाद जब पुन .तीर्थकर होने प्रारम्भ होगे तो राजा श्रेणिक जैनधर्मका प्रथम तीर्थदूर होगा।" अजातशत्रु (५५२-५१८ ई०पू०) । यद्यपि बौद्धसाहित्यमें अजातगत्रुके बौद्धधर्म अंगीकार करनेका - उल्लेख मिलता है, तथापि खोज करनेसे प्रतीत होता है कि अजातशत्रु । जनधर्मकी तरफ अधिक आकर्षित था। - स्व. डा० याकोबी जैनसूत्रोकी प्रस्तावनाम लिखते है 'अजातगाने अपने राज्यके प्रारम्भकालमे वौद्धोकी तरफ कोई । सहानुभूति नहीं दिखलाई थी। किन्तु बुद्धके निर्वाणसे ८ वर्ष
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy