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________________ इतिहास गणसत्ताक राज्योमेसे एक प्रधान राज्यके नायक थे। वे जैन श्रावर थे, उन्होने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि वे जैनके सिवा किसी दूसरेसे अपन कन्यामका विवाह न करेंगे। इससे प्रतीत होता है कि उक्त सब राज घराने जैनधर्मको पालते थे। राजा उदयनको तो जैनसाहित्या स्पष्ट रूपसे जनश्रावक बतलाया है । उदयनकी रानीने अपने महल एक चैत्यालय बनवा लिया था और उसमे प्रतिदिन जिन भगवानर्क पूजा किया करती थी। पहले राजा उदयन तापसर्मियोका भक्त थापीछे धीरे-धीरे जिन भगवानके ऊपर श्रद्धा करने लगा था। स्व. डा० याकोबी लिखते है कि चेटक जैनधर्मका महान आश्रयदाता था। उसके कारण वैशाली जैनधर्मका एक सरक्षणस्था बना हुआ था। इसीसे बौद्धोंने उसे पाखण्डियोका मठ बतलाया है राजा श्रेणिक - (ई० पू० ६०१-५५२) __ भारतके इतिहासमें बहुत प्रसिद्ध मगवाधिपति राजा विम्बसार जैनसाहित्यमे श्रेणिकके नामसे अति प्रसिद्ध है। यह राजा पहले वौद्ध' भगवानका अनुयायी था । एक बार किसी चित्रकारने उसे एक राजकन्याका चित्र भेट किया । राजा चित्र देखकर मोहित हो गया। चित्रकारसे उसने कन्याके पिताका नाम पूछा तो उसे ज्ञात हुआ कि वह वैशालीके राजा चेटककी सबसे छोटी पुत्री चेलना है। श्रेणिकने राजा' चेटकसे उसे मांगा किन्तु चेटकने यह कहकर अपनी कन्या देनेसे इन्कार कर दिया कि राजा श्रणिक विधर्मी है और एक विधर्मीको वह अपनी कन्या नहीं दे सकता । तव श्रेणिकके वडे पुत्र अभयकुमारने कौशलपूर्वक चेलनाका हरण करके उसे अपने पिताको सौंप दिया। दोनो प्रेमपूर्वक रहने लगे। धीरे-धीरे चलनाके प्रयत्नसे राजा श्रेणिक जनवमंकी ओर आकृष्ट हुआ और भगवान महावीरका अनुयायी हो गया। वह महावीरकी उपदेश सभाका मुख्य श्रोता था। जन शास्त्रोके प्रारम्भमे इस बातका उल्लेख रहता है कि राजा श्रेणिक्के
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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