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________________ जैनधर्म प्राचीन और रमणीय अतिशय क्षेत्र है। एक मन्दिरमे एक ताकके महारावके ऊपर २३ प्रतिमाएं सुदी हुई है। चारों तरफ दीवारोपर भी मुनियोकी बहुत सी मनियाँ खुदी हुई है। एक विशाल सभामण्डप, चार गुमटियाँ और दो मानस्तभ भी है। मानस्तम्भोपर प्रतिमाएं और शिलालेख है। श्रीऋपभदेव (केशरियाजी)--उदयपुरस करीव ४० मोलपर यह क्षेत्र है। यहाँ श्रीपभदेवजीका एक बहुत विशाल मन्दिर वना हुआ है। उसके चारो मोर कोट है। भीतर मध्यमें सगमरमरका एक बडा मन्दिर है जिसके ४८ ऊँचे ऊंचे शिखर है। इसके भीतर जाने से श्रीऋषभदेवजीका वडा मन्दिर मिलता है, जिसमें श्रीऋषभदेवको ६-७ फुट ऊँची पद्मासनयुक्त श्यामवर्णकी दिगम्बर जैनमूर्ति है। यहाँ केशर चढानेका इतना रिवाज है कि सारी मति केशरसे ढक जाती है । इसीलिये इसे केशरियाजी भी कहते हैं। श्वेताम्बरोकी ओरसे मूर्तिपर भागी, मुकुट और सिंदूर भी चढता है। इसकी वडी मान्यता है। होनो सम्प्रदायवाले इसकी पूजा करते है। । आवू पहाड-पश्चिमीय रेलवेके भाव रोड स्टेशनसे आव बहाड़के लिये मोटरें जाती है । पहाड़पर सडकके दाई ओर एक दिगम्बर जैन मन्दिर है, तथा बाई ओर दैलवाडाके प्रसिद्ध श्वेताम्बर मन्दिर बने हुए है, जिनमेंसे एक मन्दिर विमलशाहने वि० सं० १०८८ में १८ करोड ५३ लाख रुपये खर्च करके वनवाया था। दूसरा मन्दिर वस्तुपाल तेजपालने बारह करोड ५३ लाख रुपये खर्च करके वनवाया पा। संगमरमरपर छीनीके द्वारा जो नक्काशी की गई है वह देखनेको ही चीज ह । दोनों विशाल मन्दिरोंके बीचमे एक छोटासा दि० जैन इन्दिर भी है। __अचलगढ-दलवाडासे पांच मील अचलगढ है। यहां तीन वेताम्बर मन्दिर है। उनमेंसे एक मन्दिरमें सप्तधानकी १४ प्रतिमाएं
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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