SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२४ जैनधर्म • मन्दिर है। नीचेकी मजिलमे एक ग्यामवर्ण २॥ फुट ऊंची पार्श्वनाथ। जीकी प्राचीन प्रतिमा है जो वेदीमें अपर विराजमान है। सिर्फ दक्षिण घुटना जमीनमें सटा हुआ है। इसीसे यह प्रतिमा अन्तरिक पार्श्वनायक नामसे प्रसिद्ध है। यहाँ दोनो सम्प्रदायोके लिये पूजाका समय नियत है। सुबह ६ से १ और १२ से ३ तक श्वेताम्बर पूजन करते है और इसे १२ तथा ३ से ६ तक दिगम्बर लोग पूजन करते है। ____ कारजा-अकोला जिलेमे मतिजापूर स्टेगनसे यवतमालको जानेवाली रेलवे लाइनपर यह एक कसवा है । यहाँपर तीन विशाल प्राचीन जैनमन्दिर है । एक मन्दिरमें चाँदी, सोने, होरे, मूंगे और पन्नेकी प्रतिमाएं है। यहां दो भट्टारकोकी गदिया है एक बलात्कार गणकी, दूसरी सेनगणकी। सेनगणके भट्टारकके मन्दिरमें संस्कृत राकृतके प्राचीन जैनग्नन्योका बहुत बड़ा भडार है। यहाँ महावीर ब्रह्मचर्याश्रम नामकी एक आदर्श शिक्षा सस्या भी है।। ___ मुक्तागिरि-यह सिद्धक्षेत्र वराडके एलचपुरसे १२ मीलपर पहाडी जंगलमें है। नीचे धर्मशाला है। पासमें ही एक छोटी पहाडी है, जिसपर चढने के लिये सीढियां बनी हुई है। ऊपर कई गुफाएं है जिनमे बहुतसी प्राचीन प्रतिमाएं है। गुफामोंके आसपास ५२ मन्दिर है। यहाँसे बहुतसे मुनियोने मोक्ष प्राप्त किया था। ___भातकुली-यह अतिशय क्षेत्र अमरावतीसे १० मीलपर है। यहाँ ३ दि० जनमन्दिर है जिनमेंसे एकमें श्रीऋषभदेव स्वामीकी पनासनयुक्त तीन फुट ऊंची मूर्ति विराजमान है। इसकी यहाँ बहुत मान्यता है। प्रति वर्ष कार्तिक वदी पचमीको मेला भरता है। ___ रामटेक-यह स्थान नागपुरसे २४ मीलपर है। यहाँ दि० जैनोके आठ मन्दिर है, जिनमेंसे एक प्राचीन मन्दिरमें सोलहवे तीर्थदूर श्री शान्तिनाथ स्वामीकी १५ फीट ऊंची मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy