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________________ जैनधर्म ती। परन्तु जब ऐसे प्राचीन शिलालेखमे आदि तीर्थसरकी प्रति का स्पष्ट और प्रामाणिक उल्लेख इतिहासके साथ मिलता है तो निना पड़ता है कि श्रीऋषभदेवके प्रथम जैन तीथंडर होनेकी मान्य में तथ्य अवश्य है। __ अव प्रश्न यह है कि वे कब हुए? ऊपर बतलाया गया है कि जैन परम्पराके अनुसार प्रथम जैन र्थिङ्कर श्रीऋषभदेव इस अवसर्पिणीकालके तीसरे भागमे हुए, और व उस कालका पांचवां भाग चल रहा है अत उन्हें हुए लाखों करोड़ों र्ष हो गये। हिन्दू परम्पराके अनुसार भी जब ब्रह्माने सृष्टिके पारम्भमें स्वयभू मनु और सत्यरूपाको उत्पन्न किया तो ऋषभदेव नसे पांचवी पीढीमें हुए। और इस तरह वे प्रथम सतयुगके अन्तमें ए। तथा अब तक २८ सतयुग बीत गये है। इससे भी उनके मयकी सुदीर्घताका अनुमान लगाया जा सकता है । अत जैनमिका आरम्भकाल वहुत प्राचीन है। भारतवर्ष में जब आर्योका पागमन हुआ उस समय भारतमे जो द्रविड सभ्यता फैली हुई थी, स्तुत वह जैन सभ्यता ही थी। इसीसे जैन परम्परामे बादको जो संघ कायम हुए उनमें एक द्रविडसघ भी था। २-श्रीऋषभदेव । कालके उक्त छ भागोमें से पहले और दूसरे भागमे न कोई धर्म होता है, न कोई राजा और न कोई समाज । एक परिवारमें पति और जली ये दो ही प्राणी होते है। पासमें लगे वृक्षोसे, जो कल्पवृक्ष कहे झाते है उन्हें अपने जीवनके लिये आवश्यक पदार्थ प्राप्त हो जाते है, इसीमे वे प्रसन्न रहते हैं। मरते समय एक पुत्र और एक पुत्रीको जन्म १ मेजर जनरल जे सी आर फलांग महोदय अपनी The ShortStu Tly in Science of Comparative Religion 77977 geus festes -'ईसासे अगणित वर्ष पहलेसे जैनधर्म भारतमें फैला हुआ था। आर्य लोग माना और
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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