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________________ जैन साहित्य २४७ । , पुष्पदन्त और भूतबलि ये दोनों मुनि पुष्पदन्त और भूतवली थे । आषाढ शुक्ला एकादशीको अध्ययन पूरा होते ही धरसेनाचार्यने उन्हे बिदा कर दिया । दोनो शिष्य वहाँसे चलकर अकुलेश्वरमे आये और वही चतुर्मास किया। पुष्पदन्त मुनि अकुलेश्वरसे चलकर बनवास देशमे आये। वहाँ पहुंचकर उन्होने जिनपालितको दीक्षा दी और 'बीसदि सूत्रो' की रचना करके उन्हे पढाया । फिर उन्हे भूतबलिके पास भेज दिया । भूतबलिने पुष्पदन्तको अल्पायु जानकर आगेकी ग्रन्थरचना की। इस तरह पुष्पदन्त और भूतबलिने षट्खण्डागम नामके सिद्धान्त ग्रन्थकी रचना की। फिर भूतबलिने षट्खण्डागमको लिपिबद्ध करके ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीके दिन उसकी पूजा की। इसीसे यह तिथि जैनोमे श्रुत पचमीके नामसे प्रसिद्ध हुई। गुणधर (वि० सं० की २री शती) आचार्य गुणधर भी लगभग इसी समयमे हुए। वे ज्ञान-प्रवाद नामक पाँचवे पूर्वके दसवें वस्तु अधिकारके अन्तर्गत कसायपाहुड़रूपी श्रुत समुद्रक पारगामी थे। उन्होने भी श्रुतका विनाश हो जानेके भयसे कसायपाहुड नामका महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ग्रन्थ प्राकृत गाथायोमे निबद्ध किया। - कुन्दकुन्द (वि० सं० की २री शती) आचार्य कुन्दकुन्द जैनधर्मके महान् प्रभावक आचार्य थे। इनके विषयमे प्रसिद्ध है कि विदेह क्षेत्रमे जाकर सीमंधर स्वामीकी दिव्यध्वनि सुननेका सौभाग्य इन्हे प्राप्त हुआ था । इनका प्रथम नाम पद्मनन्दि था। कोण्डकुन्दपुरके रहनेवाले होनेसे बादमें वे कोण्डकुन्दाचार्यके नामसे प्रसिद्ध हुए। उसीका श्रुतिमधुर रूप 'कुन्दकुन्दाचार्य बन गया । इनके प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और समयसार नामके ग्रन्थ अति प्रसिद्ध है जो नाटकत्रयी कहलाते है। इनके सिवा इन्होंने
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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