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________________ जैन साहित्य एक प्रख्यात विद्वान् हो गये है। किंवदन्ती है कि इन्होंने १४०० प्रकरण ग्रन्थ रचे थे । इनके उपलब्ध दार्शनिक ग्रन्थोंमें अनेकान्तवादप्रवेश, अनेकान्त जयपताका तथा शास्त्रवार्ता समुच्चयका नाम उल्लेखनीय है । तत्त्वार्थ सूत्रपर भी इन्होने एक टीका लिखी है । वादिदेव सूरिका प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार तथा उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति स्याद्वादरत्नाकर व आचार्य हेमचन्द्रकी प्रमाणमीमासा और मल्लिषेणसूरिकी स्याद्वादमंजरी भी न्यायशास्त्र के सुन्दर ग्रन्थरत्न है । सतरहवी शती मे आचार्य यशोविजय भी एक कुशल नैयायिक हुए है, इन्होने विद्यानन्दिकी अष्टसहस्रीपर एक टिप्पण रचा है तथा नयोपदेश, नयामृततर गिणी, तर्कपरिभाषा आदि अनेक ग्रन्थ रचे है। जैनधर्मके दार्शनिक सिद्धान्तोपर इन्होने नये दृष्टिकोणसे विचार किया है तथा नव्यन्यायकी शैली भी ग्रन्थ रचे है । २४३ पुराण साहित्यमे विमलसूरिका पउमचरिय (पद्मचरित ) एक प्राकृत काव्य है । यह प्राचीन समझा जाता है । इसमे रामचन्द्रकी कथा है । 'वसुदेव हिण्डी' भी प्राकृत भाषाका पुराण है इसमे महाभारत की कथा है। यह भी प्राचीन है। आचार्य हेमचन्द्रका त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित भी उल्लेखनीय है । अन्य भी अनेक ग्रन्थ है । araria हेमचन्द्रका द्वयाश्रयं महाकाव्य, अभयदेवका जयन्तविजय, मुनिचन्द्रका शान्तिनाथचरित अच्छे काव्य समझे जाते है । गद्य काव्यमे धनपाल कविकी तिलकमंजरी एक सुन्दर आख्यायिका ग्रन्थ है । नाटकोमे रामचन्द्र सूरिका नल - विलास, सत्यहरिश्चन्द्र, राघवाभ्युदय, निर्भयव्यायोग आदिका नाम उल्लेखनीय है । जयसिंह' का हम्मीरमदमर्दन एक ऐतिहासिक नाटक है । इसमे वोलुक्यराज वीरधवलके द्वारा हम्मीर नामके यवन राजाको भगानेका वर्णन है । लाक्षणिक ग्रन्थोंमे आचार्य हेमचन्द्रका काव्यानुशासन द्रष्टव्य है । कथा साहित्यका तो यहाँ भण्डार भरा है । उसमें उद्योतनसूरिकी 1
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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