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________________ २३ जैन साहित्य पट्सण्डागमका ही अन्तिम खण्ड महाबध है जिसकी ( भूतबलि आचार्यने की थी। यह भी प्राकृतमे है और इसका प्रमा ४१ हजार है। इन सभी ग्रन्योमे जैन कर्मसिद्धान्तका बहुत सूक्ष्म औ गहन वर्णन है। चिरकालसे ये तीनों महान् ग्रन्थ मूडविद्री (दक्षिण कनारा): जन भण्डारमें ताडपत्रपर सुरक्षित थे। वहाँके भट्टारक महोदन तथा पचोकी उदात्त भावनाके फलस्वरूप अब इन तीनोका प्रकाराः हिन्दी टीकाके साथ हो रहा है। __ईताकी दसवी शताब्दीमे दक्षिणमें नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवत नामके एक जैनाचार्य हुए। वे उक्त तीनो आगम ग्रन्योके महान् 1451, थे। उन्होंने उनसे सकलन करके गोमट्टसार तथा लब्धिसार क्षणासा! नामक दो सग्रह ग्रन्थ रचे, जो प्राकृत गाथावद्ध महान् ग्रन्थ है। उ. भी जीव, कर्म और कर्मोके क्षपण यानी विनाशका सुन्दर किन्तु गह वर्णन है। दोनो ग्रन्योपर सस्कृत टीकाएँ भी उपलव्य है और जयार स्व०प० टोडरमलजीकी जयपुरी भापामे रची हुई भाषाटीका उपलब्ध है । इन टीकाओके साथ यह महान ग्रन्थ कई खण्डोमेक प्रकाशित हो चुका है। ईसाकी प्रथम शताब्दीमे कुन्दकुन्द नामके एक महान् आचा हो गये है। इनके तीन ग्रन्थ समयसार, प्रवचनसार और पचास्तिकार अति प्रसिद्ध है जो कुन्दकुन्दत्रयीके नामसे भी ख्यात है। तीनो प्राकृतमे है । समयसारमें विविध दृष्टियोसे आत्मतत्त्वका सुन्दर दिने चन है, जैन अध्यात्मका यह अपूर्व ग्रन्थ है। नवी शतीके अध्यात्म आचार्य अमृतचन्द्र सूरीने इस ग्रन्यपर सस्कृत पद्योमे कलगकी (च की है जो बडी हृदयहारिणी है । सतरहवी शताब्दीके कविवर बनारस दासने इन कलगोका हिन्दीमे अत्यन्त रोचक पद्यानुवाद किया है। __प्रवचनसार और पञ्चास्तिकायमें जैनाभिमत तत्त्वोका यु: ५ विवेचन है। कहा जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्दने बहुतसे प्राभृतो+
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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