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________________ चारित्र १७ नोकर चाकरोको तो गुस्सेमे आकर मालिक लोग बँधवा डालते है किन्तु पालतू पशु तो विना बाँधे रह नही सकते । इसलिये उनको इस तरहसे बाँधना चाहिये कि यदि कभी घरमे आग लग जाये तो वे बन्धन छुड़ाकर भाग सके । २. क्रूरता पूर्वक डण्डे या कोडेसे पीटना । ३. निर्दय होकर हाथ, पैर, कान, नाक वगैरहका काट डालना, किन्तु यदि किसी पशु या मनुष्यके शरीरका कोई अवयव सड़ गया है या शरीरमे फोडा हो गया हो तो उसके काटने या चीरनेमे कोई दो नही है । ४. गुस्सेमे आकर या लोभसे मनुष्य या पशुके ऊपर उसक शक्तिसे ज्यादा बोझा लादना या शक्तिसे अधिक काम लेना । श्रावक चाहिये कि मनुष्य जितना वोझा स्वयं उठाकर ले जा सके और उता कर नीचे रख सके उतना ही बोझा उससे उठवाये और रखवाये इसी तरह चौपाया जितना बोझा लादकर अच्छी तरह चल सके उतन ही उसपर लादे । उसमे भी समयका ध्यान अवश्य रखे । उचित सम तक ही उनसे काम लेना चाहिये । यदि श्रावक खेती करता हो तो ह और गाडी वगैरहमे बैलोको समयसे जोते और समयसे खोल दे शक्ति से अधिक काम लेना भी हिंसा ही है । ५. भूख प्यास से पीडित प्राणी मर भी जाता है इसलि खाना किसीका भी न रोकना चाहिये । यदि किसीने अपराध किया ह तो उसे डाटनेके लिये मुंहसे यह चाहे कह दे कि आज तुझे भोजन नहीं मिलेगा, किन्तु भोजनका समय आनेपर तो नियमसे दूसरोको खिलाक ' ही स्वयं खाना चाहिये । हाँ, यदि कोई अपना आश्रित बीमार हो उसने स्वय ही उपवास किया हो तो बात दूसरी है । अत. श्रावकको इ बातका बराबर ध्यान रखना चाहिये कि अहिंसाव्रतमे दोष न आने पाये यदि असाव्रती श्रावक अपने आश्रितों के साथ ऐसा प्रेमम व्यवहार रखे तो उसे इससे आर्थिक दृष्टिसे भी लाभ ही रहेगा, क्योि
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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