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________________ सिद्धान्त 'एयरसवण्णगध दो फास सहकारण मसई । खपतरिद दन्व परमाणु त पियाणाहि ॥८१॥' -पञ्चास्ति "जिसमे एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श गुण होते है जो शब्दकी उत्पत्तिमे कारण तो है किन्तु स्वयं शब्दरूप नही है . HE स्कन्धसे जुदा है, उसे परमाणु जानो।' ___ ऊपरके इस विवेचनसे परमाणुके सम्वन्धमें अनेक वातें ज्ञात होती है। पुद्गलके सबसे छोटे अविभागी अशको परमाणु कहते है। वह परमाणु एकप्रदेशी होता है, इसीलिये उसका दूसरा भाग नहीं हो सकता। उसमे कोई एक रस, कोई एक रूप, कोई एक गध और शीत-उष्णमेसे एक तथा स्निग्ध रूक्षसे एक, इस तरह दो स्पर्श होते है। यद्यपि परमाणु नित्य है तथापि स्कन्धोके टूटनेसे उसकी उत्पत्ति होती है। अर्थात् अनेक परमाणुओंका समूहरूप स्कन्ध जी विघटित होता है तो विघटित होते होते उसका अन्त परमाणु रूपीहोता है, इस दृष्टिसे परमाणुलोकी भी उत्पत्ति मानी गई है। किन्तु द्रव्यल्पसे तो परमाणु नित्य ही है। ___अनेक परमाणुओके वन्धसे जो द्रव्य तैयार होता है, उसे स्कन्ध कहते है। दो परमाणुओके मेलसे द्वयणुक बनता है, तीन परमाणुओके मेलसे त्र्यणुक तैयार होता है। इसी तरह, सख्यात, असख्यात.' अनन्त परमाणुओके मेलसे संख्यात प्रदेशी, असख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदशी स्कन्ध तैयार होते है। हम जो कुछ देखते है वह सर्न, स्कन्ध ही है। धूपमे जो कण उड़ते हुए दृष्टिगोचर होते है, वे भी स्कन्ध ही है। __ 'यहाँ यह बतला देना अनुचित न होगा कि आधुनिक रसायन शास्त्र (Chemistry) मे जो 'अटोम' माने गये है वे जैन परमाणुक, समकक्ष नही है । यद्यपि 'अटोम' का मतलव आरम्भमे यही लिया गया था कि जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता। तथापि अद १. Cosmology old and new, By pro.G. R. Jaun |
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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