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________________ 'जैन दर्शन के मौलिक तत्व [89 बनस्पति भी आत्मा है। उनमें चेतना है; हर्ष, शोक, भय आदि प्रवृत्तियां हैं। पर उनके दिमाग नहीं होता । चेतना का सामान्य लक्ष्य स्वानुभव है । जिसमें स्वानुभूति होती है, सुख-दुःख का अनुभव करने की क्षमता होती है, वही श्रात्मा है। फिर चाहे वह अपनी अनुभूति को व्यक्त कर सके या न कर सके, उसको व्यक्त करने के साधन मिले या न मिले। वाणी-विहीन प्राणी को प्रहार से कष्ट नहीं होता, यह मानना यौक्तिक नहीं। उसके पास बोलने का साधन नहीं, इसलिए वह अपना कष्ट कह नहीं सकता। फिर भी वह कष्ट का अनुभव कैसे नहीं करेगा ? विकास-शील प्राणी मूक होने पर भी श्रङ्ग -सञ्चालनक्रिया से पीड़ा जता सकते हैं। जिनमें यह शक्ति भी नहीं होती, वे किसी तरह भी अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं कर सकते। इससे स्पष्ट है कि बोलना, अङ्ग सञ्चालन होते दीखना, चेष्टात्रों को व्यक्त करना, ये श्रात्मा के व्यापक लक्षण नहीं हैं। ये केवल विशिष्ट शरीरधारी यानी त्रस- जातिगत श्रात्माओं के हैं। स्थावर जातिगत आत्मानों में ये स्पष्ट लक्षण नहीं मिलते। इससे क्या उनकी चेतनता और सुख-दुःखानुभूति का लोप थोड़े ही किया जा सकता है। स्थावर जीवों की कष्टानुभूति की चर्चा करते हुए शास्त्रों में लिखा है किजन्मान्ध, जन्म- मूक, जन्म-बधिर एवं रोग प्रस्त पुरुष के शरीर का कोई युवापुरुष तलवार एवं खड़ग् से ३२ ३२ बार छेदन-भेदन करे, उस समय उसे जैसा कष्ट होता है वैसा कष्ट पृथ्वी के जीवों को उन पर प्रहार करने से होता है । तथापि सामग्री के अभाव में वे बता नहीं सकते 1 और मानव प्रत्यक्ष प्रमाण का आग्रही ठहरा। इसलिए वह इस परोक्ष तथ्य को स्वीकार करने से हिचकता है। खेर। जो कुछ हो, इस विषय पर हमें इतना सा स्मरण कर लेना होगा कि श्रात्मा श्ररूपी श्रवेतन सत्ता है, वह किसी प्रकार भी चर्म चतु द्वारा प्रत्यक्ष नहीं हो सकती । आज से ढाई हजार वर्ष पहिले कौशाम्बी पति राजा प्रदेशी ने अपने जीवन के नास्तिक-काल में शारीरिक अवयवों के परीक्षण द्वारा आत्म प्रत्यक्षीकरण के अनेक प्रयोग किए। किन्तु उसका वह समूचा प्रयास विफल रहा। आज के वैज्ञानिक भी यदि वैसी ही असम्भव चेष्टाएं करते रहेंगे तो कुछ भी तथ्य नहीं निकलेगा। इसके विपरीत
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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