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________________ १०० जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व किन्तु इस भेद का आधार उनकी विभिन्न वर्गणाएं हैं। अलग-अलग परिस्थिति में एक ही व्यक्ति को इस भेद का शिकार होना पड़ता है। खान-पान, औषधि आदि का शरीर के अवयवों पर असर होता है। शरीर के अवयव इन्द्रिय-मन-भाषा के साधन होते हैं, इसलिए जीव की प्रवृत्ति के ये भी परस्पर कारण बनते हैं। ये बाहरी वर्गणाए आन्तरिक योग्यता को सुधार या बिगाड़ नहीं सकतीं, और न बढ़ा-घटा भी सकती। किन्तु जीव की श्रान्तरिक योग्यता की साधनभूत अान्तरिक वर्गणाओं में सुधार या बिगाड़ ला सकती हैं। यह स्थिति दोनों प्रकार की वर्गणाओं के बलाबल पर निर्भर है। (४) ग्रह-उपग्रह से जो रश्मियां निकलती हैं, उनका भी शारीरिक वर्गणाओं के अनुसार अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव होता है। विभिन्न रंगों के शीशों द्वारा सूर्य-रश्मियों को एकत्रित कर शरीर पर डाला जाए तो स्वास्थ्य या मन पर उनकी विभिन्न प्रतिक्रियाएं होती हैं । संगठित दशा में हमें तत्काल उनका असर मालूम पड़ता है। असंगठित दशा और सूक्ष्म रूप में उनका जो असर हमारे ऊपर होता है, उसे हम पकड़ नहीं मकते। ___ ज्योतिर्विद्या में उल्का की और योग-विद्या में विविध रंगों की प्रतिक्रिया भी उनकी रश्मियों के प्रभाव से होती है। यह बाहरी असर है । अपनी आन्तरिक वृत्तियों का भी अपने पर प्रभाव पड़ता है। ध्यान या मानसिक एकाग्रता से चंचलता की कमी होती है, श्रात्म-शक्ति का विकास होता है। मन की चंचलता से जो शक्ति बिखर जाती है, वह ध्यान से केन्द्रित होती है। इसीलिए आत्म-विकाम में मन गुप्ति, वचन-गुति और काय-गुप्ति का बड़ा महत्त्व है । मानसिक अनिष्ट-चिन्तन से प्रतिकूल वर्गणाएं गृहीत होती है, उनका स्वास्थ्य पर हानिजनक प्रभाव होता है। प्रमन्न दशा में अनुकूल वर्गणाएँ अनुकूल प्रभाव डालती है। क्रोध आदि वर्गणाओं की भी ऐसी ही स्थिति है। ये वर्गणाएं समूचे लोक में भरी पड़ी हैं। इनकी बनावट अलग-अलग दंग की होती है। और उसके अनुसार ही में निमित्त बनती है।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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