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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व [ ९९ (१) श्रनुवंशिक समानता का कारण है वर्गणा का साम्य । जन्म के आरम्भ काल में जीव जो श्राहार लेता है, वह उसके जीवन का मूल आधार होता है। वे वर्गणाएं मातृ-पितृ सात्म्य होती है, इसलिए माता और पिता का उस पर प्रभाव होता है । सन्तान के शरीर में मांस, रक्त और मस्तुलुंग ( भेजा ) ये तीन अंग माता के और हाड़, मज्जा और केश-दाढ़ी-रोम-नखये तीन अंग पिता के होते हैं | वर्गणाओं का साम्य होने पर भी आन्तरिक योग्यता समान नहीं होती। इसलिए माता-पिता से पुत्र की रुचि, स्वभाव, योग्यता भिन्न भी होती हैं। यही कारण है कि माता-पिता के गुण दोषों का सन्तान के स्वास्थ्य पर जितना प्रभाव पड़ता हैं, उतना बुद्धि पर नहीं पड़ता । ( २ ) वातावरण भी पौद्गलिक होता है। पुद्गल पुद्गल पर सर डालते हैं । शरीर, भाषा और मन की वर्गणात्रों के अनुकूल वातावरण की वर्गणाए ं होती हैं, उन पर उनका अनुकूल प्रभाव होता है और प्रतिकूल दशा में प्रतिकूल । आत्मिक शक्ति विशेष जागृत हो तो इसमें अपवाद भी हो सकता । मानसिक शक्ति वर्गणाओं में परिवर्तन ला सकती हैं। कहा भी है"चित्तायतं धातुबद्धं शरीरं, स्वस्थे चित्ते बुद्धयः प्रस्फुरन्ति । तस्माचितं सर्वथा रक्षणीयं, चित्ते नष्टे बुद्धयो यान्ति नाशम् ” ॥ 1 है यह धातु-बद्ध शरीर चित्त के अधीन है। स्वस्थ चित्त में बुद्धि की स्फुरणा होती है। इसलिए चित्त को स्वस्थ रखना चाहिए । चित्त नष्ट होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि पवित्र और बलवान् मन पवित्र वर्गणाओं को ग्रहण करता है, इस लिए बुरी वर्गणाएं शरीर पर भी बुरा असर नहीं डाल सकती। गांधीजी भी कहते थे 'विकारी मन ही रोग का केन्द्र बनता है, यह भी सर्वथा निरपवाद नहीं है । ( ३ ) खान-पान और औषधि का असर भी भिन्न-भिन्न प्राणियों पर भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। इसका कारण भी उनके शरीर की भिन्नभिन्न वर्गणाए हैं! वर्गणाओं के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में अनन्त प्रकार का वैचित्र्य और तरतमभाव होता है। एक ही रस का दो व्यक्ति दो प्रकार का अनुभव करते हैं। यह उनका बुद्धि-दोष या अनुभव-शक्ति का दोष नहीं
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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