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________________ [१४] आत्म-साधना का मार्ग न रहकर अहंकार पोषण का विकास के स्थान पर उसका आवरण हो जाता है। शव की पूजा प्रारम्भ हो जाती है। मार्ग बन जाता है, आत्म वहाँ प्राण के स्थान पर कुछ दिन पहले कश्मीर में सुहम्मद के बाल को लेकर तूफान खड़ा हो 34 गया। मुहम्मद ने परमात्मा पर विश्वास और विश्व बन्धुत्व का सन्देश दिया था । उन्होने अपने शरीर, वस्त्र या अन्य किसी जड़ वस्तु को पूजने के लिये नहीं कहा था । इस्लाम जड़ बस्तुओं की पूजा को कुफ या नास्तिकता कहता है किन्तु उसका मंडा लेकर चलने वाले मुहम्मद के बाल को लेकर पड़ौसी का गला काटने को तैयार हो गये । चेतन के स्थान पर शव के पुजारी बन गये । मन सन्देह में पड़ जाता है कि उन्हें मुसलमान कहा जाय या नहीं । 1 ईसाई धर्म में चार सौ वर्ष पहले में उनकी लाश रखी हुई है। और लाखों ईसाई दर्शन करने के की सेवा करने और शत्रु को भी अनुयायिओं के लिये उस लाश का नहीं रहा । जेवियर नाम के सन्त हुये थे । गोवा समय-समय पर उसका प्रदर्शन किया जाता है लिये इकट्ठे हो जाते हैं। ईसा ने दुखियों गले लगाने का सन्देश दिया था । किन्तु जितना महत्व है उतना उन सन्देशों का अंग्रेज शासक उसे भारत के स्वतन्त्र होने एक वर्ष तक वह स्थान निकलते रहे। सांची के सम्मान के साथ उसे बुद्ध का एक दांत सांची के खंडहरों में मिला था। इग्लैंड ले गये और लंदन के संग्रहालय में रख दिया। पर बहुमूल्य निधि के रूप में उसे वापिस लाया गया। स्थान पर घूमता रहा। स्वागत में बड़े-बड़े जुलूस बिहार का पुनरुद्धार किया गया और वहाँ अत्यन्त स्थापित कर दिया गया। बह दाँत बहुत बड़ा है, इस आधार पर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वह मनुष्य का नहीं हो सकता । इसी प्रकार पटने के संग्रहालय में एक सिर रखा हुआ है। कहा जाता है कि वह बुद्ध के प्रधान शिष्य सारिपुत्र का है। प्राणीशास्त्रियों को इसमें भी सन्देह है। उनकी धारणा है कि मनुष्य की खोपड़ी उस प्रकार की नहीं हो सकती । कुछ भी हो, भगवान बुद्ध का सन्देश था कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुद्धि से सोचकर चले । वे यह भी नहीं चाहते थे कि सर्वसाधारण उनकी बातों को बिना सोचे-समझे मान ले। फिर भी अनुयाथियों द्वारा दाँत और खोपड़ी को महत्व देना समझ में नहीं आता ।
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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