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________________ [ १५४ ] बौद्ध साहित्य में सात तीर्थकरों के अभिधान के साथ कट्टा नाम -1 -निम्गण्ठ नातपुरा, नाथपुत तथा नाटपुत मिलता है। वह भगवान् महाबीर के लिये ही प्रयुक्त हो सकता है । क्योंकि जैनागमों में प्रयुक्त णायपुत्त या जातपुत्त से यह बहुत साम्य रखता है। 1 से सम्बन्धित नाम है। विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। निवृत नाम से अभिहित महावीर के कुल का नाम 'ज्ञात' था । जैन परम्परा के अनुसार नायपुत्त या ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर के पितृवंश उनके लिए ज्ञात, शातकुल निवृत और शातकुलचन्द्र भगवान् के पिता को ( सिद्धार्थ को ) भी शातकुल किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान् अगस्त्य सिंह स्थविर तथा आ० जिनदास महत्तर के अनुसार 'ज्ञात' क्षत्रियों की एक जाति थी । 'ज्ञात' से वे शातकुल उत्पन्न सिद्धार्थ का ग्रहण करते हैं। और 'शातपुत्र' से भगवान् महावीर का । " I आचारांग सूत्र में भगवान् महावीर को काश्यपगोत्री कहा गया है। वे इक्ष्वाकुवंश में पैदा हुए, यह भी उल्लेख मिलता है । भगवान ऋषभनाथ starकुवंशी और काश्यपगोत्री थे । अतः वे आदि काश्यप कहलाते थे और महावीर भी काश्यप नाम से प्रसिद्ध थे । इस दृष्टि से प्रतीत होता है कि ज्ञातृ या ज्ञात काश्यप- गोत्रियों का अवान्तर भेद रहा होगा । हरिभद्रसूरि ने ज्ञात का अर्थ 'उदार क्षत्रिय सिद्धार्थ' किया है । प्रो० वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय ने लिखा है कि लिच्छवियों की एक शाखा 'नाय' या नात थी । श्वेताम्बर अंग आगमों में 'नाय धम्मकहा' नामक एक आगम है । यहाँ प्रयुक्त 'नाय' शब्द भगवान् महावीर का ही द्योतक है। दिगम्बर आम्नाय में 'नामा' के स्थान पर 'नाथधम्मकहा' का प्रयोग हुआ है । महाकवि धनजय ने भगवान् महावीर को 'नाथवंशी' माना है। अतः वे उनको 'नाथान्वय' नाम से सम्बोधित करते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि बौद्ध साहित्य में 'नाथपुत्त' या नातपुत्त' भगवान् महावीर के लिये ही प्रयुक्त हुए हैं । १ – (क) गायकुलाप्पभूय, सिद्धत्थखत्तिय सुतेण । अ० चू० (ख) णायानाम खत्तियाणं जातिविसेसी, तम्मि संभूओ सिद्धत्थो, तस्स पुतो णायपुत्ती । जि० चू० पृ० २२१ २- ज्ञातः-उदारः क्षत्रियः सिद्धार्थः तत्पुत्रेण । हा० टी० प्र० ११६ ३. सम्मतिनई ति रो, महावीरोऽन्त्यकाश्यपो । ---- नाथान्वयो वर्द्धमानो, यतीर्थमिह साम्प्रतम् ॥
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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