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________________ [ १०. 1 पुद्गल की स्थिति जघन्य एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात् समय की होती है। इस मान्यता से शब्द भी उतने समय तक उस ल्प में रह सकते हैं। बृहत्कल्प' भाग्य में एक प्रसंग दिया है-एक राजा के गर्दभ कन्या थी। राजा ने प्रतिशा पूर्वक यह बात मन्त्री से कह दी। लेकिन मन्त्री से रहा नहीं गया, तब उसने जंगल में किसी वृक्ष के कोटर में मुंह डालकर यह बात कह दी। कुछ समय बाद किसी ने उसी वृक्ष की बांसुरी बनवाई। बजाने लगा तक उससे ध्वनि निकली। “गर्दभ कन्या राजा, गर्दम कन्या राजा" यह प्रसंग स्पष्टतः शब्द के स्थायित्व पर प्रकाश डालता है। विज्ञान ने कहा-प्रत्येक ध्वनि की तीव्रता का तृतीयांश प्रत्येक फीट की दूरी पर खत्म हो जाता है । सैनिकों के पदचाप से एक साथ उठने वाली सहश ध्वनियाँ कभी-कभी पुल को भी तोड़ सकती हैं। ध्वनि का प्रभाव वनस्पति वर्ग पर बहुत पड़ता है। सुन्दर गानों से खेतियाँ शीघ्र फलित होती है। आज कल इस प्रकार के प्रयोग किये जा रहे हैं और सफल भी हैं। भारतीय परम्परा से हम सुनते आए हैं कि तानसेन जब गाता तब दीपक जल उठते थे। उस राग का नाम भी दीपक राग है । विज्ञान में भी कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं। कहते है--एक बहुत लम्बा पेड़ किसी मन्दिर के सामने था। शाम को जब मंदिर में प्राथनाएँ होतीं, घंटियाँ बजतीं, तब वह ६० अंशका कोण बनाता हुआ मुक जाया करता था। लोग पेड़ की भक्ति से दांतों तले अंगुली दबाते थे। उसकी पूजा करते थे। लेकिन जगदीशचन्द्र बोस ने बताया कि मुकने में पेड़ की भक्ति नहीं, किन्तु मन्दिर में बजने बाली घंटियों की मधुर ध्वनि का आकर्षण है। जैन दर्शन में और भी न जाने कितने तथ्य स्पष्ट हुए हैं। तार का सम्बन्ध न होते हुए भी सुघोषा घण्टे का शब्द असंख्य योजन की दूरी पर रहे हुए घंटों में प्रतिध्वनित होता है। यह विवेचन उस समय का है जब रेडियों और वायरलेस आदि का अनुसन्धान नहीं हुआ था। भारतीय इतर दर्शनों में शब्द सम्बन्धी विविध विचार मिलते हैं। सांख्य दर्शन में शब्द प्रकृति का विकार है। नित्य' शब्दवादी मीमांसक शब्द को १-वृहत्कल्प मा० २-शानोदय अक्टूबर १९५६ पृ० २२६ ३-जैन तत्व चिन्तन पृ० १५ ४ स्थावाद मञ्जरी पृ० ४३०-"शब्दोऽनित्यः व्योमगुणत्वात् व्योम परिणामवत्"। -प्रमाकर
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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