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________________ Batmidar . जैन-भक्तिके अंग प्रयोग जैन अपभ्रंशके रहस्यवादी कवियोंने ही किया है। जोइन्दुके परमात्मप्रकाश और योगसार, श्री लक्ष्मीचन्दके सावयधम्मदोहा, मुनिरामसिंह और महचन्द के दोहा-पाहुड, जिनदत्तसूरिके उपदेश रसायनरास और आनन्दतिलकके 'आणंदा' में गुरुको ही प्रबलता है। विविध आचार्योंकी दृष्टि में जैन-पूजा ऊपर आचार्य कुन्दकुन्द [पहली शताब्दो ] के अष्टपाहुड, आचार्य समन्तभद्र [ दूसरी शताब्दी ] के समीचीन धर्मशास्त्र, आचार्य यतिवृषभ [ छठी शतान्दो ] को तियोयपण्णत्तिमें पूजाका निरूपण मिलता है। किन्तु आचार्य समन्तभद्रसे पूर्व किसीने भो पूजाको श्रावक-व्रतोंमें नहीं कहा था । आचार्य समन्तभद्रने उसकी गणना शिक्षावतके चौथे भेद वैय्यावृत्त्यमें की है। ___ आचार्य देवसेन [ १०वीं शताब्दी ] के 'भाव-संग्रह' में पांचवें गुणस्थानका वर्णन करते हुए श्रावक धर्मका विवेचन किया गया है। उन्होंने बताया कि गहस्थके लिए निरालम्ब ध्यान सम्भव नहीं, अतः उसको सालम्ब ध्यान करना चाहिए। सालम्ब ध्यानमें व्रत, उपवास और शोलके साथ-साथ ही पूजा भी शामिल है। उन्होंने देव-पूजाको मोक्षका कारण कहा है। उनका कथन है कि पूजा अभिषेकपूर्वक ही करनी चाहिए। सालम्ब ध्यानके साथ पूजाका सम्बन्ध जोड़कर उन्होंने आचार्य सोमदेवकी सामायिकी पूजाको स्वीकार कर लिया है, ऐसा स्पष्ट हो है । ___ आचार्य सोमदेव [ ११वीं शताब्दो ] ने पूजाको सामायिक शिक्षा-प्रतमें स्थान दिया है। तीनों सन्ध्याओंमें गृहकार्योंसे निर्द्वन्द्व होकर, अपने उपास्यदेवकी उपासना करना ही सामायिक शिक्षाव्रत है। आचार्य सोमदेवका स्पष्ट मत है कि पूजा सामायिक ही है, और वह तीनों समय करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "हे देव ! मेरा प्रातःकालका समय तेरे चरणारविन्दके पूजन-द्वारा, मध्याह्न काल मुनिजनोंके 4. आचार्य समन्तभद्र, समीचीन धर्मशास: पं. जुगलकिशोर सम्पादित, वीरसेवामन्दिर दिल्ली, वि० सं० २०१२, ५ । २९, पृ० १५५ । २. तम्हा सम्मादिट्ठी पुण्णं मोक्खस्स कारणं हवइ । इय णाऊण गिहत्थो पुण्णं चायरउ जत्तेण ॥ ४२४॥ पुण्णस्स कारणं फुड पढमं ता हवइ देवपूया य । कायब्बा भत्तीए सावयवग्गेण परमाए ॥ ४२५ ॥ आचार्य देवसेन, मावसंग्रह : पं० पक्षालाल सोनी सम्पादित, मा. दि. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९२१ ई०। ...
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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