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________________ भूमिका भावकी श्रद्धा अर्पित करता हूँ, जिसे मैं प्रकट नहीं कर पा रहा। इस ग्रन्थके प्रकाशित करानेकी प्रेरणा महापण्डित राहुल सांकृत्यायनसे मिली । उन्होंने इसकी परीक्षा करते हुए लिखा, "निबन्धके प्रकाशित होनेपर भारतको सभी साहित्यिक भाषाओंके विद्यार्थियोंको बहुत लाभ होगा।" मैं उनके प्रति अतीव कृतज्ञ हूँ। एक दिन दिल्ली में कलकत्ताके बाबू छोटेलालजीने इस ग्रन्थको देखा, पढ़ा और उन्हें रुचा। उन्होंने इसे भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित करानेको प्रेरणा की। वे मेरे अपने ही हैं । आभार क्या, उन्हें मेरे भाव विदित हैं। भारतीय ज्ञानपीठ, काशीको लोकोदय ग्रन्थमालाके विद्वान् सम्पादक श्री लक्ष्मीचन्द्रजी जैन और उनके सहयोगियोंके प्रति मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ। उन्होंने इसके प्रकाशनमें जैसी तत्परता दिखायी, वह लेखकोंके प्रति उनके सहृदय व्यवहारका सूचक है। 'जैन भक्ति-काव्यको पृष्ठभूमि' यदि पाठकोंको रुचिकर हुई, तो मैं इस प्रयत्न को सार्थक मानूंगा। -डॉ० प्रेमसागर जैन दि० जैन कालेज, बड़ौत, दिनाक २५-१२-१९६२
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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