SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ JAISALMES A जैन-भक्तिमान्यकी शाभूमि कान्ति नये विदुमको भौति दमकती है, वह चक्रेश्वरी हमारा कल्याण करे।" SRIMARRAMMA ४. देवी ज्वालामालिनी HEMANTRamansaiNewSpirit-ESSMEntveduardw रूपरेखा ज्वालामालिनी बाठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभको शासनदेवी हैं। ज्वालाको मालाको धारण करने ही के कारण वे ज्वालामालिनी कही जाती हैं। उन्हें करालांगी भी कहते हैं । वह्निदेवी भी इन्हींका नाम है। इनका गात्र कुमुददलकी भांति अवस है। उसपर चमकते उज्ज्वल आभरण सदैव शोभा पाते रहते हैं। देवीके आठ हाथ हैं, जिनमें वह क्रमशः त्रिशूल, पाश, झष, कोदण्ड, काण्ड, फल, वरद और चक्रको धारण करती है । देवीका वाहन महिष है। यमराजकी पत्नीका भी वाहन महिष होता है । दोनोंमें बहुत कुछ समानता है । N AME T ERE H-HINPHYT महत्ता पद्मावती और चक्रेश्वरीको भांति हो ज्वालामालिनी भी मन्त्रको देवो कहलाती है । उसके मन्त्रोंसे व्यन्तरोंकी व्याधियां और दुष्टोंको बाधाएं दूर होती है। "दक्षिणके द्रविणाधीश्वर मुनि श्री हेलाचार्यकी शिष्या कमलश्री समस्त शास्त्रोंमें पारंगत थी, मानो श्रुतदेवीने ही अवतार ले लिया हो । एक बार वह किसी दुष्ट 'ब्रह्मराक्षस' से ग्रस्त हो गयी, उसकी दशा बिगड़ने लगी। कभी तो वह हा-हाकारके स्वरोंमें रोती, और कभी अट्टहासपूर्वक हंसती थी। कभी वेदोंका उच्चारण करतेकरते ही कह-कहको ध्वनिपूर्वक दाँत निकाल देती थी। कभी घमण्डपूर्वक कहती कि ऐसा कौन मन्त्री है, जो अपने मन्त्रकी शक्तिसे मुझे छुड़ा सके ? अपनी शिष्या. H " mar- -- १. मारा खेचरति खेचरचक्रिणं या नाभेयशासनरसालवनान्यपुष्टा । चक्रेश्वरी रुचिरचक्रविरोचिहस्ता शस्ताय साऽस्तु नवविद्रमकायकान्तिः ॥४॥ जिनप्रभसूरि, कुल्यपाकस्थ ऋषभदेवस्तुति : विविधतीर्थकल्प : पृ० ९. । २. कुमुददलधवलगाना महिषमहावाहनोज्ज्वलामरणा । मां पातु वहिदेवी ज्वालामालाकरालाजी ॥२॥ जयतादेवी ज्वालामालिन्युग्रस्त्रिशूल-पाश-सप. कोदण्ड-काण्ड-फल-वरद-चक्रचिहोज्ज्वलाष्टभुजा ॥३॥ इन्धनन्दियोगीन्द्र, ज्वालिनीकल्प : प्रशस्ति ( भादि भाग ), जैन अन्य प्रशस्तिसंग्रह, दिस्सी; पृ० १३५ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy