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________________ आज तक सम्पूर्ण भारतमें इस प्रकारको प्रतिमा न मेरे देखने में मारी है और न सूचना मिली है। इसका परिकर न केवल जैनशिल्प-स्थापत्यकलाका प्रतीक है, अपितु भारतीय देवी-मूर्ति-कलाको दृष्टिसे भी अनुपम है।" ..माबू पहाड़पर अम्बादेवीका एक मन्दिर है, इसमें जो प्रधान मन्ति भगवान् ऋषभदेवको विराजमान है, वह बहुत प्राचीन नहीं है, सम्भवतः प्राचीन प्रतिमा महमूद ग़ज़नवीके द्वारा ध्वस्त कर दी गयी थी। 'कांगड़ा फोर्ट' स्थानपर भी अम्बादेवीका मन्दिर है, इसमें विराजित मूत्तिको आज भी पूजा होती है। महाकौशलमें बिलहारी ग्रामके पास जलाशयपर एक मन्दिर बना हुआ है, जिसके गर्भगहमें चक्रेश्वरी, अम्बिका और पद्मावतीकी मूत्तियां विराजमान हैं। ये मूर्तियां १२वों सदीसे अधिकको नहीं हैं। मध्य प्रान्तके भद्रावती नगरमें भी अम्बिकादेवीका एक मन्दिर है । मि० बेगलेरने १८७२-७३ में बंगालका भ्रमण किया था, उन्होंने कुछ ऐसी सड़कोंका पता लगाया है, जो प्राचीनकालमें वर्तमान थीं, और धर्म-प्रचारके लिए सुविधाजनक थीं। ये महोदय पुरलियासे २३ मील दक्षिणपश्चिम पकवीरा स्थानपर भी गये थे, और उन्होंने एक मूत्ति बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथकी यक्षिणी अम्बिका या अग्रिलाकी देखी थी। बिजौलियाके ७२३ श्लोकसे विदित है, "श्री सीयणके आनेपर उस कुण्डसे पद्मा, क्षेत्रपाल, अम्बिका, ज्वालामालिनी और साधिराज निकले थे।" अम्बिकादेवीकी कुछ ऐसी मूत्तियाँ भी हैं, जो आज अन्य नामोंसे पूजी जाती हैं । मध्यप्रदेशके पनागारमें थाने के सम्मुख एक गली में प्रवेश करते ही थोड़ी दूरपर 'खैरदैय्या' का स्थान आता है, जिसे जनता 'खैर माई या खैरदय्या' नामसे सम्बोधित करती है । वह जैनोंको अम्बिकादेवी है । यह ढाई फुटकी प्रतिमा, बैठी हुई मुद्रामें अंकित की गयी है । वह आम्र. लुम्बक और बालकादिसे युक्त है। मस्तकपर भगवान् नेमिनाथकी पद्मासनस्थ प्रतिमा है । पृष्ठ भागमें विस्तृत आम्रवृक्ष है। विन्ध्याचलसे लगभग ३ मील दूर शिवपुर ग्राम है। यहाँ एक स्त्रीको अखण्डित मूर्ति सिंहासनपर पुत्रको १. मनि कान्तिसागर, खण्डहरोंका वैभव : पृ० २१८। 2. Progress report of the archaeological Survey of Western India, Poona ( 1901 ), P. 2-71 ३. Report of the Archacological Survey, Northern circle, 1905-6, Lahore, 1906, p. 23. ४. जैन सिद्धान्तमास्कर : माग १९, किरण १, पृ. ५१ । ५. जैन सिद्धान्तमास्कर : भाग २१,किरण २, पृ. २७ । ६. मुनि कान्तिसागर, खबारोंका बैमव: पृ० १३८ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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