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________________ ११८ जैन-भक्तिकाम्यकी पृष्ठभूमि सोमदेवने भी लिखा है, "शान्ति करनेवाले भगवान् शान्तिनाथ, भव-दुःखरूपी अग्निपर धर्मामृतकी वर्षा करनेवाली और शिव-सुख देनेवाली, शान्ति मुझे प्रदान करें।" कवि कुलप्रभका कथन है, "हे जगद्भास्कर ! संसाररूपी कमलमें बंधे जोवरूपी भ्रमर आप जैसे सूर्यके उदय होते ही बन्धनसे छूट जायेंगे, तभी उनको स्थायी शान्ति मिल सकेगी।" ग्रन्थोंके अन्तिम मंगलाचरणों में प्रायः अपने लिए, संघके लिए और देशके लिए भगवान् शान्तिनाथसे शान्तिकी याचनाएँ की गयी हैं। आचार्य पूज्यपादने संघ, आचार्य, साधु, धार्मिक जनों और राष्ट्र के लिए शान्तिकी याचना को हैं । पण्डित श्री मेधावी (वि० सं० १५४१ ) के धर्मसंग्रह श्रावकाचारका अन्तिम मंगलाचरण भी ऐसा ही है। शान्ति-यन्त्रकी पूजा सागरचन्द सूरि ( १५वीं शताब्दी ) के मन्त्राधिराज-कल्पमें शान्ति-यन्त्रको पूजा दी हुई है । एक स्थानपर उन्होंने लिखा है; "शान्ति-यन्त्रको पूजा-अर्चासे १. भवदुःखानलशान्तिधर्मामृतवर्षजनितजनशान्तिः । शिवशर्मास्रवशान्तिः शान्तिकरः स्ताजिन. शान्तिः ॥ K. K. Handiqui,Yasastilaka and Indian Culture : Sholapur, 1949, p. 311. २. सौरभ्यभ्रमतो भ्रमभ्रमरवल्लीनो भवाम्भोरुह बद्धस्तत्र दलैविमोचय ततः शान्त ! जगास्कर ! ॥ कवि कुलप्रम, चतुर्विंशतिजिनस्तव : जैनस्तोत्र समुच्चय : चतुरविजय मुनि सम्पादित, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, सन् १९२८, श्लो० १७, पृ० ११९ । ३. संपूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्रसामान्यतपोधनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्ति भगवान् जिनेन्द्रः ॥ आचार्य पूज्यपाद, संस्कृत शान्तिभक्ति : दशभक्त्यादिसंग्रह : श्लो० १४, पृष्ठ १८ । ४. शान्तिः स्याजिनशासनस्य सुखदा शान्तिनृपाणां सदा शान्तिः सुप्रजशान्तयोभरभृतां शान्तिर्मुनीनां सदा । श्रोतृणां कविताकृतां प्रवचनव्याख्यातृकाणां पुनः शान्तिः शान्तिरथामिजीवनमुचः श्रीसजनस्यापि च ॥ पण्डित श्री मेधावी, धर्मसंग्रहश्रावकाचार : प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, अगस्त १९५०, प्रशस्ति अन्तिम पाठ, श्लो० ३५, पृ० २५ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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