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________________ [प्रथम creraracohnnAAAAAAAAAAD * जेलमें मेरा जैनाभ्यास मुकदमेबाजी करके हजारों नहीं, बल्कि लाखों रुपये पानीकी तरह बहा रहे हैं । इन सब प्रकारकी कलहोंका क्या कारण है ? जो मनुष्य समाज-शास्त्रके ज्ञाता हैं, वे उन तत्त्वोंको भली प्रकार जानते हैं, जिनके कारण जातियों और धर्मोंका पतन हाता है। किसी भी धर्म व समाजके पतनका आरम्भ उसी दिनसे प्रारम्भ हो जाता है, जिस दिनसे किसी न किसी छिद्र से उसके अन्तर्गत स्वार्थका कीड़ा घुस जाता है । जिस दिनसे लोगोंकी मनोवृत्तियोंके अन्दर विकार उत्पन्न हो जाता है, जिस दिनसे लोग व्यक्तिगत स्वार्थ के या मान-बड़ाईके फेर में पड़कर अपने जीवनकी नैतिकताको नष्ट करना प्रारम्भ कर देते हैं या दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिए कि जब अमुक धर्म या सम्प्रदायके अनुयायियोंके दिल और दिमागमें किसी प्रकारका विचार उत्पन्न हो जाता है, तभी वह धर्म या सम्प्रदाय गढ़ेकी यानी अवनतिकी ओर जाने लगता है। संसारमें धर्मकी सृष्टि ही इसीलिये हुई है कि वह मनुष्य प्रकृतिके कारण उत्पन्न हुई अकल्याणकर भावनाओंसे मनुष्य जातिकी रक्षा करे और सदा मनुष्यको न्याय मार्गको सफल बनाना सिखावे । बन्धुश्रो ! अगर यह हम लोगोंकी हार्दिक इच्छा है कि महावीर भगवान्के सिद्धान्तोंका घर घर प्रचार हो, . हम सच्चे जैनधर्म के अनुयायी बनकर अपनी आत्माका उद्धार करें, ... संसारमें जीवित जातियोंमें गिने जायँ, संसारमें हमारा मान हो,
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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