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________________ खण्ड] * भगवान् महावीरके बादका जैन- इतिहास * इधर दिगम्बरी भी इससे शून्य न रहे । कुछ ही समय बाद इसमें भी उपश्रेणियाँ दृष्टिगोचर होने लगीं, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है । ५१ wourt वी० संवत में श्वेताम्बरी लोगोमें 'चैत्यवासा' नामक दलकी उत्पत्ति हुई। वी० सं०६ में उनमें 'ब्रह्मद्वीपिक' नामके नवीन संप्रदायका आरम्भ हुआ । वी० सं० १४४६ में 'वट' गच्छ की स्थापना हुई। वी० सं० १६७६ में 'खरतर ' गच्छ की स्थापना हुई । वी० सं० १७५५ में 'तपा' गच्छकी स्थापना हुई । वी० सं० २०३२ में 'कटुक' मतकी स्थापना हुई । वी० सं० २०४० में 'वीजा' मतका आरम्भ हुआ । वी० सं० २०४२ में पार्श्वचन्द्रसूरिने अपने पक्षकी स्थापना की। वी० सं० १६७८ में 'लूका' गच्छ की स्थापना और २००३ में उसके साधुसंघकी स्थापना हुई । इस वृक्षमेंसे स्थानकवासी, तेरापंथी, भीखापंथी, तीन थोई वाले, आदि कई शाखाएँ तथा चौथ पंचमीका झगड़ा, अधिक HTET गड़ा, आदि कई मतभेद वाली शाखाउपशाखा निकल पड़ीं और आपस में पूरी तरह लड़ने लगीं । इधर दिगम्बरियों में भी मत-मतान्तरोंका बढ़ना आरम्भ हुआ। जैसे - द्राविड़ संघ, व्यापनीय संघ, काष्ठा संघ, मथुरा संघ, भिल्लक संघ, तेरा पन्थ, बीस पन्थ, तारण पन्थ, भट्टारक प्रथा आदि अनेक शाखा-उपशाखा इनमें भी प्रचलित होकर आपस में लड़ने लगीं ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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