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"शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः संगतिः सर्वदायः, सवृत्तानां गुणगणकथा दोषवादे च मौनम् । सर्वस्यापि प्रियहितवचो भावना चात्मतत्त्वे, संपद्यन्तां मम भवभवे यावदेतेऽपवर्गः ॥"
हे देव ! शास्त्रोंका पठन-पाठन, वीतरागकी भक्ति, सजनों की संगति, सच्चरित्रोंका गुणानुवाद, दोषोंके कहने में मौन, सबकेलिये प्रिय-हित वचन और आत्मोद्धारकी अभिलाषा, इतनी बातें मुझे तब तक प्राप्त होती रहें, जब तक कि मैं मोक्षको न पाऊँ।