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________________ खण्ड ] * नवतत्त्व अधिकार * ३८७ तक नौकाका पार लगना कठिन है । उसी प्रकार आत्मा रूपी नौका में जो पाप रूपी पानी भरा हुआ है, उसको निकालनेका उपाय मनुष्यको करना चाहिये | ऐसा किये बिना यह आत्मा| संसार-समुद्र से पार नहीं हो सकती । कर्म रूपी जलको आत्मा रूपी नौकासे निकालने के उपायको 'निर्जरा' कहते हैं। दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि श्रात्म प्रदेशोंपर जो अशुभ कर्मों के परमाणु लगे हुए हैं, उनको दूर करने के उपायको निर्जरा कहते हैं। जिस प्रकार एक चिकने घड़ेको गर्म पानी व सोड़ा आदि लगाकर साफ़ किया जाता है, उसी प्रकार कम्मल से मलीमस आत्मा तपः- संयम आदिसे पवित्र की जाती है । आत्मामें जो संचित कर्म हैं, उनको दूर करनेकेलिये अथवा आत्माको शुद्ध करने के लिये शास्त्रकारोंने बारह विधियाँ बताई हैं: १ - अनशन - 'अशनं- भोजनम् । न अशनमिति अनशनम्' अर्थात् आहार- पानीका त्याग करना । * यह एक तप है । इसमें श्राहार- पानीका त्याग किया जाता है । सामर्थ्यवान् प्राणी सर्व प्रकारके आहार पानीका त्याग कर देते हैं। एक दिनका, दो दिनका, महीने भरका, साल भरका इत्यादि जितनी अपनी सामर्थ्य हो - उसके अनुसार त्याग करते हैं और जिनमें इतनी सामर्थ्य नहीं होती, वे थोड़ा भी कर सकते हैं। आहार मात्र का त्याग कर केवल
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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