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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * प्रथम और तो कुछ नहीं, मगर गुप्र महोदय जैसे सत्यप्रेमी और निष्पक्ष सुलेखकोंकी लेखनी उनके अनुरूप प्रतीत नहीं होती। एक नये इतिहास-लेखक सज्जन श्रीरघुवीरशरण डवलिस ते. यहाँ तक आगे बढ़े हैं कि उन्होंने जैनधर्मको बौद्धधर्मकी शाखा बतलाते हुए गौतमबुद्धको ही ( जैनोंके अन्तिम तीर्थक्कर , महावीर स्वामीके नामसे उल्लेख किया है “बौद्ध- धर्म भारतवर्षसे बिल्कुल ही निर्वाचित नहीं हो गया । वर्तमान पौराणिक धर्मपर , उसन जो प्रभाव डाला है, वह कुछ कम नहीं। अपने पीछे उसने एक विश सम्प्रदायको छोड़ा, जो जन' नामसं अब तक भारतवर्ष में प्रचलित है। लगभग पन्द्रह लाख जैन इस समय देशम्म पाये जाते हैं ।........... भारतवर्षकं जैन ग्रायः सौदागर वा साहूकार हैं। उनका सिद्धान्त है कि जन-धर्म बौद्ध-धर्म भी पुराना है और बुद्धकी शिक्षाका अाधार जैन-मत ही थ'. परन्तु भारतक प्रतिहासिक निरीक्षणसे यही पता चलता है कि बौद्ध और जैन धर्म वास्तव में एक ही हैं और गौतम बद्ध जैन-धर्ममें महावीर स्वामकि नामसे पारोचत है।" -भारलवर्षका मचा इतिहास, पृष्ठ २०८ , हमारे विचार में इस प्रकारकं संशय और भ्रमक प्रतीत होनेका कारण पुराण ग्रन्थोंमें जैनधर्म-विषयक किये गये
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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