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________________ जैनधर्मकी प्राचीनता छ समय पहले बहुत से विद्वानों का ख्याल था कि जैन. धर्म कोई स्वतन्त्रधर्म नहीं, वह बौद्ध धर्मसे निकला हुआ नसकी शाखा-मात्र है; परन्तु जबसे जर्मनीके प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर हरमन जैकोबी ( ! Hart1:311 . Jat,) तथा कितने एक अन्य विद्वानोंने इस विषयकी पूरी शोध की और प्रबल प्रमाणों द्वारा इस बातको (कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा है) मिथ्या सिद्ध कर जैनधर्मको बौद्धधर्मसे सर्वथा स्वतन्त्र और बहुत प्राचीन सिद्ध कर दिखाया; तबसे यह भ्रम बहुत अंशमें तो दर हो चुका है, मगर अभी तक बहुतसे सजन जिनको जैनधर्म के बारेमें बोध नहीं है, अपनी तरङ्ग में प्राकर अब भी जैनधर्म को बौद्धधर्मकी एक शाखा अथवा महावीर भगवानके समय म चला हुआ कह दिया करते हैं। औरोंक विषयमं तो कहना ही क्या, मगर वत्तमान समयके मुप्रसिद्ध हिन्दी कवि श्रीमान् बावू मैथिलीशरण जी गुप्तने भी अभी तक इस सन्देहको दूर नहीं किया है। आपने अपनी सुप्रख्यात पुस्तक 'भारत-भारती' में जैनधर्मको बौद्धधर्मकी शाखा बतलाया है: प्रकटित हुई थी बुद्ध विभक चितमें जो भावना, पर रूपमें अन्यत्र भी प्रकटी वहीं प्रस्तावन! । फैली अहिंसा बुद्धिवर्धक जैन-पंथ समाज भी, जिसके विपुल साहित्यकी विस्तीर्णता है आज भी ॥"
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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