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________________ ३२६ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय किस प्रकार 'हरीशबल' नामक चाण्डाल आत्मघात करने गया; किस प्रकार •मुनि महाराजने उसे प्रतिबोध दिया; किस प्रकार उसने संयम पाल ब्राह्मणोंको संवरके बारेमें प्रतिबोध दिया; किस प्रकार उनसे हिंसारूप धर्मका त्याग कराया और धर्म स्वीकार कराया और किस प्रकार मुनिराज करणी कर मोक्ष गये । इत्यादि विचारना चाहिये । (१) निजग--निर्जरा कर्मों की किस प्रकार होती है कैसे उपायोंसे होती है; इत्यादि निर्जराके स्वरूपको बारम्बार चिन्तन करना 'निर्जरा' भावना है। किस प्रकार 'अर्जुन' मालीने अपने कर्मों की निजरा कर मोक्ष प्राप्त किया । इत्यादि विचारना चाहिये । (१०) लोक-लोक कितना बड़ा है. उसमें क्या-क्या रचना है: कौन-कौन जानिके जीवोंका कहाँ-कहाँ निवास है। इत्यादि लोक के स्वरूपको चिन्तन करना लोक भावना है। बनारसके तपोवन में दुष्कर तपम्वी 'शिवराज ऋपिको किम प्रकार विमङ्गज्ञान हुआ; किम प्रकार भगवान के पास आते ही उनका अज्ञान मिट गया: किम प्रकार उन्होंने संसारका असली स्वरूप देख लोक भावना भान हुए दीक्षा ली और किस प्रकार वे संयम पाल मोक्ष गये । इत्यादि विचारना चाहिये । (११) बोधि-दुर्लम-सम्यग्दर्शन. सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र, इस रखत्रय को 'बोधि' कहते हैं। इस बोधिकी प्राप्ति होना
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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