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________________ ३१८ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय कृतार्थ करना है, उन्हें सदा अपनी मर्यादाका पालन करते रहना चाहिये और अगर संकटका समय था जाय तो उन्हें मर्यादाका उल्लङ्घन न करना चाहिये । क्योंकि यह एक संकटका समय ही आत्माके बलाबलकी कसौटी है। जो प्राणी संकट के समय में अपनी मर्यादाका पालन करते हुए अपने प्राणोंपर बाजी लगा देते हैं, वे अपने मनुष्य जन्मको सफल बनाते हैं । ध्यानके लाभ पहले कहा जा चुका है कि मनकी एकाग्रताको 'ध्यान' कहते | इसका अर्थ अभ्यासीकी दृष्टिसे ऐसा भी किया जा सकता है. कि मनको एक बनानेका कार्य ध्यानका है। मनका एकाग्र करना या मनको किसी एक ओर लगा देना एक ही बात है। शूरवीर रण में विजय प्राप्त करता है. वह मनकी एकाप्रताका प्रभाव है। मुनि मोक्षमार्ग में परिषह सहन करता है, वह मनकी एकाताका प्रभाव है। विद्यार्थी परीक्षा में पास होता है, वह मनकी एकताका प्रभाव है। साधक किसी विद्या या मन्त्र की सिद्धि करता है, वह मनकी एकाग्रताका प्रभाव है। कवि कोई तलस्पर्शी, अलंकृत, रसपूर्ण, निर्दोष और रमणीय कविता करता है, वह मनकी एकाताका प्रभाव है। मेम्मरेजमके जो अद्भुत चमत्कार देखने में आते हैं, वह मनकी एकाग्रताका प्रभाव है। मनकी एकामताका बड़ा जबरदस्त प्रभाव है। संसार में जितने अद्भुत और विशिष्ट कार्य हुए हैं, होते हैं, और हो सकते हैं, वे सब इसी मनकी
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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