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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय प्रश्न उठता है कि ध्यान करनेकी आवश्यकता क्या है ? उत्तर निम्नप्रकार है:-सम्पूर्ण कर्मों का सर्वथा क्षय होना अर्थात् कर्मबन्धनसे बिलकुल छूट जाना ही मोक्ष है। यह मोक्ष प्रात्माका भान हुए बिना प्राप्त नहीं हो सकता। चित्तकी समता बिना श्रात्म-ज्ञान होना दुर्लभ है। तथा चित्तकी समता भी चित्त-विक्षपादि मलीनताको दूर करनेवाले शुभ ध्यानके बिना उत्पन्न नहीं हो सकती। इसलिये शुभगति अथवा मोक्षकी प्रापिकेलिये गृहस्थ और मुनियोंको धर्मध्यान और मुनिको शुक्लध्यान ध्याना चाहिये। ध्यानमें मनकी स्थिरता रखने के लिये स्थान, द्रव्य, काल और भावकी शुद्धिकी अत्यन्त आवश्यकता है। १. स्थान-बगीचा, पर्वतकी गुफा, समुद्र तथा नदी-नट, वृक्षोंके कुञ्ज, गाँव या नगरका एकान्त स्थान, जहाँ स्त्री. नपुंसक, पशु आदिका आना-जाना न हो और कोई क्रिम्मका कोलाहल न होता हो। इस प्रकारके एकान्त स्थान ध्यान की मिद्धिकेलिये उत्तम होते हैं। २. द्रव्य-जहाँ गाना-बजाना, स्त्री आदिक चित्र, मांस, मदिरा इत्यादि द्रव्य हो; वहाँ चित्त का स्थिर होना कठिन है । ध्यान काष्ठ के पट्टपर, पत्थरकी शिलापर या ऊनी या शुद्ध मूनी वनके पासन पर करना चाहिये । ध्यान करनेवाले व्यक्तिको हलका भोजन करना चाहिये । ध्यानकी सिद्धि कलिय पूर्व अथवा उत्तर दिशाकी और मुंह करके ध्यान करना श्रेष्ठ है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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